Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह सिद्ध हुवा किन्तु अन्यघटादि पदार्थका अभाव सरोजत्वका व्यापक है उस अभावकी प्रतियोगिता घट आदिमें है और अप्रतियोगिता नीलके अभेदमें है । इस रीतिसे सरोजत्वका व्यापक जो अत्यन्ताभाव उस अभावका अप्रतियोगी जो नीलाभेद उस अभेदसहित सरोज है ऐसा 'नीलं सरोजं भवत्येव' इस स्थानमें अर्थ होता है,-भावार्थ यह है कि,-जहां अभेद रहैगा वहांपर अभेदका अभाव नहीं रह सकता, इसलिये सरोजत्व व्यापक अत्यन्ताभावका अप्रतियोगी नीलका अभेद हुआ और उस नीलके अभेदसे युक्त सरोज है ऐसा अर्थ पूर्वोक्त वाक्यका हुआ ॥ नन्वेवं-स्यादस्त्येव घट इत्यादावत्यन्तायोगव्यवच्छेदबोधकेनैवकारेण भवितव्यम्, क्रियासङ्गतत्वात् ; एवं च विवक्षितार्थासिद्धिः, कस्मिंश्चिद्धटेऽस्तित्वस्याभावेऽपि तादृशप्रयोगसम्भवात् । यथा कस्मिंश्चित्सरोजे नीलत्वस्याभावेऽपि नीलसरोजं भवत्येवेति प्रयोगः । इति चेन्न, प्रकृतेऽयोगव्यवच्छेदबोधकस्यैवैवकारस्य स्वीकृतत्वात्, क्रियासङ्गतस्यैवकारस्यापि कचिदयोगव्यवच्छेदबोधकत्वदर्शनात । यथा-ज्ञानमर्थ गृह्णात्येवेत्यादौ ज्ञानत्वसमानाधिकरणात्यन्ताभावाप्रतियोगित्वस्यार्थग्राहकत्वे धात्वर्थे बोधः । तत्राप्यत्यन्तायोगव्यवच्छेदबोधस्योपगमे ज्ञानमर्थ गृह्णात्येवेतिवज्ज्ञानं रजतं गृह्णात्येवेति प्रयोगप्रसङ्गः । सकलज्ञानेषु रजतग्राहकत्वस्याभावेऽपि यत्किचिज्ज्ञाने रजतग्राहकत्वसत्त्वेनैव ज्ञानं रजतं गृह्णात्येवेत्यत्यन्तायोगव्यवच्छेदबोधकैवकारप्रयोगस्य निर्बाधत्वात् । तद्वत्प्रकृते क्रियासङ्गतोऽप्ययोगव्यवच्छेदबोधक एवकारः । स्यादस्त्येव घट इत्यादौ घटत्वसमानाधिकरणात्यन्ताभावाप्रतियोगित्वस्यैवकारार्थस्य धात्वर्थेऽस्तित्वेऽन्वयेन घटत्वसमानाधिकरणोऽत्यन्ताभावाप्रतियोग्यस्तित्ववान् घट इति बोधः । घटत्वसमानाधिकरणो योऽत्यन्ताभावः, न तावदस्तित्वात्यन्ताभावः, किन्त्वन्याभावः, तदप्रतियोगित्वस्यास्तित्वे सत्त्वात् ॥ कदाचित् ऐसा कहो कि, ऐसा माननेसे 'स्यादस्ति एव घट' कथंचित् घट है इत्यादि उदाहरणमें भी अत्यन्तायोगव्यवच्छेदक ही एवकार होना चाहिये क्योंकि यहां भी क्रिया सङ्गत एवकार है और क्रिया अन्वित एवकारको अत्यन्तायोगव्यवच्छेदक कह आये हैं तो इस प्रकार कथन करनेको इष्ट अर्थात् खरूपादिसे भी अस्तित्वके सदृश नास्तित्वरूप अनिष्टकी व्यावृत्ति अर्थात् अयोगव्यवच्छेदरूप अर्थकी सिद्धि नहीं होगी? और किसी घटमें अस्तित्वके अभावमें भी इस प्रकारके प्रयोगकी संभावना है। जैसे किसी सरोजेमें नीलत्वके अभावमें भी 'नीलं सरोजं भवत्येव' कमल नील भी होता है ऐसे ही 'स्यादस्ति एव घटः' यहां भी उसी अर्थमें एवकार क्यों नहीं ? ऐसा यहां नहीं कह सकते । क्योंकि इस प्रचलित स्थल 'स्यादस्ति एव घटः' में अयोगव्यवच्छेदबोधक ही एवकार स्वीकार किया गया है । कहीं २ क्रियाके साथ सङ्गत एवकार भी अयोगव्यवच्छेदबोधक अर्थमें देखा गया है । जैसे 'ज्ञानं अर्थ १ नील गुणीका अभेद. २ श्वेत कमलमें. ३ ज्ञान. For Private And Personal Use Only

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