Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कि षट् द्रव्योंके स्वद्रव्यसे अस्तित्व और परद्रव्यसे नास्तित्व उनमें व्यवस्थित हो क्योंकि छ द्रव्योंसे भिन्न तो कोई द्रव्य ही नहीं है तब इनके स्वद्रव्य तथा परद्रव्यसे अस्तित्वआदि धर्म षट् द्रव्योंमें कैसे रह सकते हैं ? ॥ यदि ऐसा प्रश्न करो तो इसका उत्तर कहते हैंइन षट् द्रव्योंका भी शुद्ध सत् द्रव्यकी अपेक्षासे तो अस्तित्व, और उससे विरुद्ध अशुद्ध असत् द्रव्यकी अपेक्षासे नास्तित्व भी सिद्ध होता है, अर्थात् षट् (छ) द्रव्योंका शुद्ध सत् द्रव्य तो स्वरूप है उसकी अपेक्षासे और अशुद्ध असत् द्रव्य इनका परद्रव्य है, उसकी अपेक्षासे छ द्रव्योंका नास्तित्व भी युक्तिपूर्वक सिद्ध है। ननु-महासत्त्वरूपस्य शुद्धद्रव्यस्य स्वपरद्रव्यादिव्यवस्था कथं ? तस्य सकलद्रव्यक्षेत्रकालभावात्मकत्वात्, तद्वथतिरेकेणान्यद्रव्याद्यभावात्, इति चेन्न:-शुद्धद्रव्यस्यापि सकलद्रव्यक्षेत्रकालाद्यपेक्षया सत्त्वस्य, विकलद्रव्याद्यपेक्षयाऽसत्त्वस्य च, व्यवस्थितेः । 'सत्ता सप्रतिपक्षका' इति वचनात् । __ प्रश्नः-महासत्त्वरूप जो शुद्ध द्रव्य है उसकी स्वकीय तथा परकीय द्रव्यकी व्यवस्था कैसे होसकती है ? क्योंकि महासत्त्वरूप शुद्ध द्रव्य तो संपूर्ण द्रव्य क्षेत्र काल तथा भाव स्वरूप ही है, उससे भिन्न जब दूसरा द्रव्य नहीं है तब महासत्त्वरूप शुद्ध द्रव्यका क्या स्वद्रव्य होसकता है और क्या परद्रव्य होसकता है और स्व पर द्रव्यके बिना महासत्त्वरूप शुद्ध द्रव्यकी सत्त्व असत्त्वकी व्यवस्था कैसे होसकती है ? । ऐसी शंका कभी नहीं कर सकते । क्योंकि महासत्त्वरूप शुद्धद्रव्यके भी सैकल द्रव्य क्षेत्र तथा कालादिकी अपेक्षासे सत्त्वकी और विकल द्रव्य क्षेत्र कालादिकी अपेक्षासे असत्त्वकी व्यवस्था पूर्ण रीतिसे है अर्थात् महासत्त्व शुद्ध द्रव्यका सकल द्रव्य क्षेत्र काल तथा भाव तो स्वकीय द्रव्य हैं उनकी अपेक्षासे सत्त्व और विकल द्रव्य क्षेत्र काल भाव पररूप हैं उनकी अपेक्षासे असत्त्व भी युक्तिसे सिद्ध है ॥ संपूर्ण द्रव्य क्षेत्र कालादिरूप जो एक महासत्ता है वही विकल द्रव्य क्षेत्र आदिसे प्रतिपक्ष सहित है ।। ऐसा अन्यत्र आचार्यका बचन है। एतेन सकलक्षेत्रकालव्यापिनो गगनस्य सकलकालक्षेत्रापेक्षया सत्त्वं यत्किञ्चित्क्षेत्रकालापेक्षयाऽसत्त्वं च निरूपितं प्रतिपत्तव्यम् ।। इस महासत्त्वरूप शुद्ध द्रव्यके स्वकीय तथा परकीय द्रव्य क्षेत्र आदिके निरूपणसे ही संपूर्ण क्षेत्र काल व्यापी आकाशका भी सम्पूर्ण काल क्षेत्रकी अपेक्षासे तो सत्त्व और यत्किंचित् क्षेत्र कालकी अपेक्षासे असत्त्व भी पूर्ण रीतिसे प्रतिपादित होगया यह समझलेना । १ स्थित, अपना और द्रव्य नहीं है तब इनमें सत्त्व असत्त्व कैसे. २ सम्पूर्ण द्रव्य क्षेत्रादिकी सत्ता महासत्त्व है. ३ सम्पूर्ण. ४ न्यून वा अपूर्ण. ५ किंचित् अल्प, तात्पर्य यह है कि आकाश सम्पूर्ण द्रव्य देश कालव्यापी है ऐसा कोई देश काल नहीं है जहां आकाश न हो इस लिये सम्पूर्ण द्रव्य क्षेत्र (देश) कालकी अपेक्षासे तो आकाशका सत्त्व और अल्प द्रव्य क्षेत्र काल आदिकी अपेक्षासे असत्त्व है क्योंकि वह अल्प द्रव्य क्षेत्र कालादिमें नहीं है किन्तु सबमें है. For Private And Personal Use Only

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