Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३ ननु-घटोऽभिधेयः प्रमेयत्वादित्यादिहेतौ वैधयेविरहेपि साधर्म्य दृश्यत इति साधर्म्यस्य वैधाविनाभूतत्वाभावान्न दृष्टान्तसंगतिः, इति चेदुच्यते । साधर्म्यन्नाम साध्याधिकरणवृत्तित्त्वेन निश्चितत्वम् । वैधय॑ च साध्याभावाधिकरणावृत्तित्वेन निश्चितत्वम् । एवं चाभिधेयत्वाभावाधिकरणे शशशेंगादाववृत्तित्वेन निश्चितत्वं प्रमेयत्वस्य वर्तत इति तादृशहेतोःधर्म्यमक्षतमिति । प्रश्नः-"घटः अभिधेयः प्रमेयत्वात्" घट अभिधेय अर्थात् कथनके योग्य है । क्योंकि उसमें प्रमेयत्व धर्म है, इत्यादि अनुमानमें जहां प्रमेयत्व आदि हेतु हैं, वहां वैधर्म्यके अभावमें साधर्म्य है तो साधर्म्य वैधर्म्यका साहचर्य न रहा तब साधर्म्य वैधhके सदृश अस्तित्व नास्तित्वसे व्याप्त है यह दृष्टांत अयोग्य है । कारण यह है कि प्रमेय सब पदार्थ हैं तो जहां प्रमेयत्व है वहां प्रमेयत्वका अभाव न होनेसे वैध→के बिना भी साधर्म्य है ? । यदि ऐसी शंका करो तो इसका उत्तर देते हैं,-साध्यके अधिकरण आधारोंमें जिसकी वृत्तिता निश्चित हो उसको साधर्म्य कहते हैं, और साध्यके अभावके अधिकरणमें जिसका अवृत्तित्व अर्थात् न रहना निश्चित हो उसको वैधर्म्य कहते हैं इसलिये पूर्व कथित अनुमानमें साध्य अभिधेयत्व है उसके अभावके अधिकरण शशशृङ्ग आदिमें अवृत्तिता प्रमेयत्वकी निश्चित है क्योंकि शशशृङ्ग आदि कुछ न होनेसे न उसमें अभिधेयत्व साध्य है और न प्रमेयत्व हेतु ही है इसलिये साध्याभावके अधिकरणमें अवृत्तित्वरूपसे निश्चितत्व धर्म प्रमेयत्वमें है इसलिये पूर्णरूपसे इस हेतुमें वैधर्म्य भी है। ___एवं-नास्तित्वं स्वाभावेनास्तित्वेनाविनाभूतम् , विशेषणत्वात् । वैधर्म्यवत् , इत्यनुमानेनापि तयोरविनाभावसिद्धिः। ___ और जैसे अस्तित्व नास्तित्वस्वभावसे व्याप्त है यह अनुमान पूर्व सिद्ध करचुके हैं ऐसे यह भी अनुमान है । कि नास्तित्व अस्तित्वस्वभावसे अविनाभूत अर्थात् व्याप्त है क्योंकि वह विशेषण है जैसे वैधर्म्य इस अनुमानसे नास्तित्व अस्तित्वका अविनाभाव सिद्ध है। · ननु-पृथिवीतरेभ्यो भिद्यते, गन्धवत्त्वादित्यादिकेवलव्यतिरेकिहेतौ वैधर्म्य साधर्म्यण विनापि वर्तत इति निरुक्तानुमाने दृष्टान्तासंगतिरितिचेन्न । केवलव्यतिरेकिहेतावपि साध→स्य घटादावेव सम्भवात् । इतरभेदाधिकरणे घटे गन्धवत्त्वरूपहेतोनिश्चितत्वेन साध>स्याक्षतत्वात् । पक्षभिन्न एव साधम्यै न पक्ष इति नियमाभावात् । १ जो प्रमाणसे जानाजाय तो प्रमाणसे सब कुछ जाना जाता है इस लिये प्रमेयत्व हेतु विना वैधय॑के साधर्म्य रूपसे ही है. २ साथ रहनेका नियम (व्याप्ति) अर्थात् व्याप्यके रहनेसे व्यापक अवश्य रहे जैसे धूमके रहनेपर अग्नि आम्रत्वके रहनेपर वृक्षत्व. ३ अविनाभूत जैसे व्याप्ति वा अविनाभावके नियमसे जहां धूम है वहां अग्नि अवश्य है ऐसे ही जहां अस्तित्व है वहां किसी न किसी अपेक्षासे नास्तित्व भी है. ४ रहना वा सत्ता. ५न रहना अथवा असत्ता साध्य अभिधेयके अभावके अधिकरण शशशृंग आदिमें प्रमेयत्वकी अवृत्तिता (न होना वा रहना) निश्चित है. ६ व्याप्तिरूप संबंध व्यापककी सत्ता बिना व्याप्यकी सत्ताका न होना इसीका नाम अविनाभाव है तो इस अनुसानसे नास्तित्व अस्तित्वके विना नहीं रहता और अस्तित्व भी नास्तित्वके बिना नहीं रहता है। इसलिये दोनोंका परस्पर अविनाभाव अर्थात् व्याप्ति है. For Private And Personal Use Only

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