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अथ तृतीयभंगस्तु निरूप्यते । घटस्स्यादस्ति च नास्ति चेति तृतीयः । घटादिरूपैकधर्मिविशेष्यकक्रमार्पितविधिप्रतिषेधप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् । क्रमार्पितस्वरूपपररूपाद्यपेक्षयाऽस्तिनास्त्यात्मको घद इति निरूपितप्रायम् ।
अथ तृतीयभङ्गव्याख्या निरूप्यते. "घटः स्यादस्ति च स्यान्नास्ति च" किसी अपेक्षासे घट है किसी अपेक्षासे नहीं है, यह तीसरा भङ्ग है, घटआदिरूप एक धर्मी विशेष्यवाला तथा क्रमसे योजित विधि प्रतिषेध विशेषणवाला जो बोध तादृश बोधका जनक वाक्यत्व यह तृतीय भङ्गका लक्षण है अर्थात् जिस ज्ञानमें घटआदिरूप एक पदार्थ विशेष्य हो और क्रमसे योजना किये हुए सत्त्व असत्त्व स्वरूप विशेषण हो ऐसा जो ज्ञान उस ज्ञानवाला जो वाक्य यह ही तृतीय भङ्गका लक्षण है । अब क्रमसे अर्पित अर्थात् योजितस्वरूप द्रव्य आदिकी अपेक्षासे अस्तित्वका आश्रय, और पररूप द्रव्य आदिकी अपेक्षासे नास्तित्वका आश्रय घट, यह तृतीय वाक्यार्थ होनेसे लक्षणसमन्वय होगया प्रथम द्वितीय भङ्गकी व्याख्यामें भी प्रायः यह विषय निरूपित है।
सहार्पितस्वरूपपररूपादिविवक्षायां स्यादवाच्यो घट इति चतुर्थः । घटादिविशेष्यका वक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् । __ इसी प्रकार सह अर्पित अर्थात् साथ ही योजितस्वरूप द्रव्य आदि चतुष्टय तथा पररूप द्रव्य आदि चतुष्टयकी विवक्षा करनेपर 'स्यादवक्तव्य एव घट: किसी अपेक्षासे घट अवाच्य है यह चतुर्थ भङ्ग प्रवृत्त होता है । घट आदि पदार्थरूप विशेष्यवाला, और अवक्तव्यत्व विशेषणवाला जो बोध तादृश बोधका जनक वाक्यत्व, इस चतुर्थ भङ्गका लक्षण है, अर्थात् जिस ज्ञानमें घट आदिमेंसे कोई एक पदार्थ तो विशेष्य हो और अवक्तव्यत्व विशेषण हो उस ज्ञानको उत्पन्न करानेवाला जो वाक्य तादृश वाक्यता ही इस भङ्गका लक्षण है इस रीतिसे कथंचित् अवक्तव्यत्वका आश्रयीभूत घट, ऐसा इस वाक्यसे अर्थज्ञान होता है।
ननु-कथमवक्तव्यो घटः, इति चेदत्र ब्रूमः । सर्वोपि शब्दः प्रधानतया न सत्त्वासत्त्वे युगपत्प्रतिपादयति, तथा प्रतिपादने शब्दस्य शक्त्यभावात् , सर्वस्य पदस्यैकपदार्थविषयत्वसिद्धेः । अस्तीतिपदं हि सत्तावाचकं नासत्त्वं प्रतिपादयति, तथा नास्तीतिपदमसत्त्ववाचकं न सत्तां बोधयति । अस्त्यादिपदस्यास्तित्वनास्तित्वोभयधर्मवाचकत्वे च तदन्यतरपदाप्रयोगप्रसंगः।
प्रश्नः-अवक्तव्य अर्थात् कहनेको अशक्य कैसे घट होसकता है, किसी न किसी रीतिसे सभी पदार्थ कहे जाते हैं ? यदि ऐसी शंका की जाय तो यहांपर कहते हैं; सब शब्द एक कालमें ही प्रधानतासे सत्त्व तथा असत्त्वको नहीं प्रतिपादन कर सकते क्योंकि एक कालमें ही प्रधानतासे सत्त्व तथा असत्त्व दोनोंको प्रतिपादन करनेकी शब्दमें शक्ति ही
१ मिला हुआ. २ कहनेकी इच्छा. ३ जो कहा नहीं जाय. ४ प्रगट करनेमें. ५ सामर्थ्य.
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