Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथित अनेकान्तरूप अर्थ स्यात् शब्दसे द्योतित होता है और द्योतकत्व तथा वाचकत्व दोनो पक्ष अव्यय निपातोंका शास्त्र संमत ही है । स्यात् शब्दका प्रयोग न करनेपर सर्वथा एकान्त पक्षकी व्यावृत्तिपूर्वक अनेकान्तरूप अर्थका ज्ञान ऐसे असंभव है जैसे एवकार प्रयोगके विना विवक्षिते अर्थका निश्चयपूर्वक ज्ञान ॥ __ नन्वप्रयुक्तोऽपि स्याच्छब्दो वस्तुनोऽनेकान्तस्वरूपत्वसामर्थ्यात्प्रतीयते, सर्वत्रैवकारवत् , इति चेत्सत्यं प्रतिपाद्यानां स्याद्वादन्यायकौशलाभावे वस्तुसामर्थ्यात्तदप्रतीत्या तेषां प्रतिपत्यर्थ तदावश्यकत्वात् । प्रतिपाद्यानां स्याद्वादकौशले च स्यात्कारप्रयोग इष्ट एव । प्रमाणादिनाऽनेकान्तात्मके समस्तवस्तुनि सिद्धे कुशलानामस्ति घट इति प्रयोगेऽपि स्यादस्त्येव घट इति प्रतिपत्तिसम्भवात् । . कदाचित् ऐसी शङ्का करो कि सब स्थानमें एवकार शब्दके प्रयोगके विना भी जैसे अवधारणरूप अर्थका बोधक एव शब्दका बोध शब्दकी शक्तिसे हो जाता है ऐसे ही वाक्यमें अप्रयुक्त अर्थात् प्रयोग न किया हुआ भी 'स्यात्' शब्द वस्तुकी अनेकान्तरूप अर्थबोध करानेकी शक्ति होनेसे अनेकान्तरूप अर्थबोधक स्वयं भासैगा. यह शङ्का सत्य है परन्तु जिनमतके जीवनरूप स्याद्वादन्यायमें शिप्योंका कौशल न होनेपर केवल वस्तुके सामर्थ्यमानसे अनेकान्तरूप अर्थका भान न होगा. इसलिये उन अप्रौढ शिष्योंको अनेकान्तरूप अर्थका बोध करानेकेलिये वाक्यमें स्यात् शब्दका प्रयोग आवश्यक है । और शिष्योंकी स्याद्वादमें पूर्ण रूपसे कुशलता होनेपर तो स्यात् शब्दका प्रयोग करना इष्ट ही है। क्योंकि जब प्रमाण आदिसे सम्पूर्ण वस्तुमें अनेकान्त स्वरूपता सिद्ध है तब स्याद्वादमें कुशल मनुष्यको 'अस्ति घटः' घट है ऐसा प्रयोग करनेपर भी 'स्यादस्ति एव घट:' कथंचित् घट है इस अर्थका बोध होना सम्भव है। तदुक्तम्-सो अन्यत्र भी कहा है. ___ “सोऽप्रयुक्तोऽपि वा तज्ज्ञेस्सर्वत्रार्थात्प्रतीयते । यथैवकारोऽयोगादिव्यवच्छेदप्रयोजनः ॥” इति ॥ "स्याद्वादके जाननेवाले बुद्धिमान् जन यदि अनेकान्तरूप अर्थके प्रकाशक स्यात्का प्रयोग न भी करें तो वह प्रमाणादि सिद्ध अनेकान्त वस्तुके स्वभावसे ही सर्वत्र स्वयं अर्थात् आप ही ऐसे भासता है जैसे विना प्रयोग भी अयोगादिके व्यवच्छेदका बोधक एवकार शब्द" ॥ ननु योऽस्ति घटादिस्स सर्वोऽपि स्वायत्तद्रव्यक्षेत्रकालभावैः, नेतरैः। तेषामप्रस्तुतत्वादेव निराससम्भवात् । तथा च स्यात्कारप्रयोगो व्यर्थ इति चेत्सत्यम् । स तु तादृशोऽर्थश्शब्दात्प्रतीयमानः किशात्प्रतीयत इति चिन्तायां स्यात्कारः प्रयुज्यते । स च लिङन्तप्रतिरूपको निपातः । १ प्रकाशित. २ कथन करनेको अभीष्ट. ३ निश्चय. ४ प्रवीणता. ५ व्यावृत्ति. For Private And Personal use only

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