________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आदि पर द्रव्य हैं, उनमें मृत्तिकारूप द्रव्यस्वरूपसे तो घट है, और सुवर्णरूप द्रव्यसे नहीं है । और अपने मृत्तिकारूप द्रव्यसे जैसे घटका सत्त्व है ऐसे ही पर सुवर्ण आदि द्रव्यरूपसे भी यदि उसका सत्त्व ही मानो तो घट मृत्तिकोमय है, सुवर्णमय नहीं है, ऐसे जो नियम होता है वह नहीं होगा । और ऐसे नहीं माननेसे, अर्थात् पर द्रव्यसे उससे भिन्न द्रव्यका सत्त्व माननेसे प्रत्येक द्रव्यका जो नियम लोकमें है कि यह अमुक द्रव्य है, यह अमुक है इसका विरोध होगा क्योंकि जब सभी द्रव्य स्वद्रव्यसे तथा परद्रव्यसे भी हैं तव भेद क्या है और भेद अभावसे प्रत्येक द्रव्यका नियम नहीं हो सकता। ___ ननु संयोगविभागादेरनेकद्रव्याश्रयत्वेपि न द्रव्यप्रतिनियमो विरुद्धयत इति चेन्न । तस्यानेकद्रव्यगुणत्वेनानेकद्रव्यस्यैव स्वद्रव्यत्वात्, स्वानाश्रयद्रव्यान्तरस्यैव परद्रव्यत्वात् । स्वानाश्रयद्रव्यात्मनापि संयोगादेस्सत्त्वे स्वाश्रयद्रव्यप्रतिनियमव्याघातस्य तदवस्थत्वात् । तथा परद्रव्यात्मनेव स्वद्रव्यात्मनापि घटस्यासत्त्वे सकलद्रव्यानाश्रयत्वप्रसंगेन निराश्रयत्वापत्तिः ।
कदाचित् यह कहो कि संयोग विभाग आदि अनेक द्रव्यके आश्रय रहनेपर भी द्रव्योंके नियमका विरोध नहीं है. यह शंका अयुक्त है। क्योंकि संयोग विभाग आदि अनेक द्रव्यके गुण हैं इसलिये अनेक द्रव्य ही उनका खद्रव्य है, इसलिये अनेक द्रव्य उनका आधार होनेसे अनेक खद्रव्यरूपसे उनकी सत्ता युक्त है. और आधार वा आश्रय जो अन्य द्रव्य नहीं है वही पर द्रव्य है, यदि जो द्रव्य संयोग आदिका आश्रय नहीं है उस अपने अनाश्रय वा अनाधार द्रव्यरूपसे संयोग आदिकी सत्ता मानो तो अमुक द्रव्य संयोग आदिका आश्रय है अमुक द्रव्य नहीं है इस नियमका भङ्ग अवश्य होगा, क्योंकि जब अपने आश्रय द्रव्य खरूपसे तथा अनाश्रय द्रव्य स्वरूपसे भी संयोग आदिका अस्तित्व है तब घट संयुक्त है पट संयुक्त नहीं है, यह नियम कैसे हो सकता है । और जैसे पर द्रव्य रूपसे घटकी असत्ता मानी जाती है ऐसे ही खद्रव्यसे असत्ता ही मानी जाय तो सम्पूर्ण वस्तु खद्रव्य और परद्रव्यके आश्रय न होनेसे घट निराधार हो जायगा, क्योंकि जब कोई उसका आधार न रहा तब वह कहां रहेगा। — एवं घटस्य स्वक्षेत्रं भूतलादि, परक्षेत्रं कुड्यादि । घटः स्वक्षेत्रेस्ति, परक्षेत्रे नास्ति । घटस्य स्वक्षेत्र इव परक्षेत्रेपि सत्त्वे प्रतिनियतक्षेत्रत्वानुपपत्तिः । परक्षेत्र इव स्वक्षेत्रेप्यसत्त्वे च निराधारत्वापत्तिः । - इसी प्रकार जिस स्थानमें घट हो वह भूतल वा काष्ठ आदि घटका स्वक्षेत्र है, और अन्य भित्ति आदि जहां घट नहीं है वह उसका परक्षेत्र है। उनमेंसे अपने क्षेत्रमें घट है और परक्षेत्रमें नहीं है घटकी जैसे स्वक्षेत्रमें सत्ता है ऐसे ही यदि परक्षेत्रमें भी मानीजाय .. १ मृत्तिकासे बना हुआ. २ सोनेसे बना हुआ. ३ अपने रहनेका नियत स्थान सब पदार्थकी सत्ता अपने द्रव्य क्षेत्र काल तथा भावझे मानी गई है और अन्य द्रव्य क्षेत्रादिसे असत्ता. ४ अपने रहनेके स्थानसे भिन्न स्थान.
For Private And Personal Use Only