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तो घट अमुक स्थानमें है अमुक स्थानमें नहीं है यह विभाग नहीं बनेगा, क्योंकि अपने तथा अन्यके क्षेत्रमें भी घटका सत्त्व है तब घटादि पदार्थ कहां हैं और कहां नहीं हैं यह विभाग कैसे हो सकता है और परक्षेत्रमें जैसे घटादिका असत्त्व माना है ऐसे ही अपने क्षेत्रमें भी असत्त्व मानो तो घट आदि निराधार ही हो जाएंगे, क्योंकि अपने तथा अन्यके क्षेत्रमें जब असत्ता ही है तब उनकी सत्ताका आधार कौन हो सकता है। __ तथा घटस्य स्वकालो वर्तमानकालः, परकालोऽतीतादिः । तत्र स्वकालेस्ति, परकाले नास्ति। घटस्य स्वकाल इव परकालेपि सत्त्वे प्रतिनियतकालत्वाभावेन नित्यत्वमेव स्यात् । परकाल इव स्वकालेप्यसत्त्वे सकलकालासम्बन्धित्वप्रसंगेनावस्तुत्वापत्तिः । कालसम्बन्धित्वमेव हि वस्तुत्वम् । एवञ्च घटो घटत्वेनास्ति, पटत्वेन नास्ति, मृद्रव्येणास्ति, सुवर्णद्रव्येण नास्ति, स्वक्षेत्रादस्ति, परक्षेत्रान्नास्ति, स्वकालादस्ति, परकालान्नास्तीति पर्यवसन्नम् ।
तथा घटका स्वकाल क्या है ? कि वर्तमान काल, अर्थात् जिस कालमें घटपर्याय वर्त्तता है वही उसका निज काल है, और भूत भविष्यत् उसके पर काल हैं. क्योंकि वर्तमान कालसहित भूत भविष्य कालमें यह घट नहीं है । इनमेंसे अपने कालमें तो घट है और पर कालमें नहीं है । और जैसे निज कालमें घटकी सत्ता है ऐसे ही यदि पर कालमें भी मानी जाय तो अमुक कालमें घट है और अमुक कालमें नहीं है इस प्रकार नियत कालके अभावसे घट नित्य हो जायगा, क्योंकि निज तथा पर कालमें भी जब उसकी सत्ता मानी गई तो कहां नहीं है ? । और पर कालमें जैसे असत्ता है ऐसे ही स्वकालमें भी यदि असत्ता ही मानो तो किसी कालमें घटकी सत्ताका सम्बन्ध न होनेसे शशशृङ्गवत् घट अवस्तु हो जायगा । क्योंकि किसी न किसी कालके साथ वस्तुकी सत्ताका संबन्ध होने ही से उसका वस्तुत्व सिद्ध होता है । अब इस प्रकार पूर्व कथित रीतिसे घटत्व धर्मसे घट है पटत्व धर्मसे नहीं है, घट मृत्तिका रूप स्वद्रव्य स्वरूपसे है, पर सुवर्ण द्रव्यसे नहीं है, घट अपने क्षेत्रसे है पर क्षेत्रसे नहीं है, और घट अपने कालसे है, पर कालसे नहीं है, यह तात्पर्य सिद्ध हुआ । __ अत्रायं बोधप्रकारः-घटत्वेनेति तृतीयार्थोऽवच्छिन्नत्वं, धात्वर्थेन्वेति । असधात्वर्थोऽस्तित्वं सत्त्वपर्यवसन्नम् । आख्यातार्थ आश्रयत्वम् । तथा च घटत्वावच्छिन्नास्तित्वाश्रयो घट इति प्रथमवाक्याबोधः । अभावानामधिकरणात्मकतया पटत्वावच्छिन्नाभावस्य घटस्वरूपत्वात् , तत्र नञ्समभिव्याहृतासधातोरभावोर्थः, आश्रयत्वमाख्यातार्थः, इति रीत्या तादृशाभावाश्रयो घट इति बोधेपि तादृशाभावात्मकत्वमेव घटस्य सिद्धयति, अभावानामधिकरणात्मकत्वात् । तृतीयवाक्ये मृद्रव्यपदोत्तरतृतीयाया अवच्छिन्नत्वमर्थः । एवमपि बोधा ऊह्याः ॥
अब यहां वाक्यार्थके बोधकी रीति यह है. “घटः घटत्वेन अस्ति" घट घटत्व स्वरूपसे है इस वाक्यमें जो 'घटत्वेन' यहां तृतीया विभक्तिका अर्थ अवच्छिन्नत्व अर्थात् घटत्व
१ किस कालमें वकीय तथा परकीय कालमें भी घटकी सत्ता माननेसे सर्व कालमें घट सिद्ध होगया. २ अन्य पदार्थ से पृथक् करनेवाले अवच्छेदकरूप घटत्व धर्मसे सहितत्व.
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