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जो ज्ञान उस ज्ञानको उत्पन्न करनेरूप उपकार अस्तित्व आदि धर्म घट आदि वस्तुका करते हैं । 'घटः स्यादस्ति एवं' यहांपर अस्तित्वका स्वानुरक्तत्वकरणरूप उपकार क्या है कि अस्तित्व धर्म जिसमें विशेषण है और घट जिसमें विशेष्य है इस प्रकारके ज्ञानका जनक होना अर्थात् ऐसा ज्ञान उत्पन्न कर देना है ऐसा जिसमें ज्ञान धर्म विशेषण हो और धर्मी (वस्तु) विशेष्य हो उस ज्ञानको उत्पन्न करनेरूप वस्तुका उपकार नास्तित्व आदि सम्पूर्ण अन्य धर्म भी करते हैं तो इस रीतिसे एक कार्यजनकतारूप उपकारसे भी सब धर्मोकी अभेदसे वस्तुमें स्थिति हुई. ५ तथा घट आदि पदार्थके जिस देशमें अपनी अपेक्षासे अस्तित्वधर्म है घटके उसी देशमें अन्यकी अपेक्षासे नास्तित्व आदि सम्पूर्ण धर्म भी हैं क्योंकि घटके कण्ठदेशमें अस्तिता धर्म है और उसके पृष्ठदेश (भाग) में नास्तिता है ऐसा व्यवहार अथवा अनुभव नहीं है इस लिये देश भेद नहीं है । इस प्रकारसे गुणीके एक देशवृत्तितारूप गुणीके देशरूप अभेद सब धर्मों की स्थिति है. ६ तथा जिस प्रकार एक वस्तुत्वस्वरूपसे अस्तित्वका घटमें संसर्ग है ऐसे ही एक वस्तुत्वरूपसे अन्य सब धर्मोंका भी संसर्ग है इस रीतिसे एक संसर्ग प्रतियोगितारूप संसर्गसे अभेदवृत्ति सब धर्मोकी घट आदि वस्तुमें है, ७ कदाचित् यह शङ्का करो कि सम्बन्ध तथा संसर्गमें क्या भेद है ? तो इसका उत्तर कहते हैं-किसी अपेक्षासे तादात्म्यरूप सम्बन्धमें तो अभेद प्रधानतासे रहता है और भेद गौणतासे और संसर्गमें तो भेद प्रधानतासे रहता है और अभेद गौणतासे रहता है यही विशेष सम्बन्ध तथा संसर्गमें है । और सम्बन्धके विषयमें जो कथंचित् तादात्म्यरूपता कहा है वह तादात्म्य कथंचित् भेद अभेद उभयरूप है । उनमेंसे भेदसहित अभेदको सम्बन्ध कहते हैं । यहांपर भेदसहित अभेद कहनेसे ही सम्बन्धमें भेद विशेषण होनेसे गौण है और अभेद मुख्य है यह तात्पर्य सिद्ध होगया है । तथा अभेदसहित भेदको संसर्ग कहते
१ यहांपर खपदसे अस्तित्व आदि धर्मका ग्रहण है घटके अनन्तर अस्ति आदि पद लगानेसे वह ऐसा ज्ञान कराते हैं कि हम (धर्म ) विशेषण हैं और जिस वस्तुमें धर्म है वह विशेष्य है जैसे रक्त कमल ऐसा कहनेसे रक्तत्व धर्म अपने सहित कमलको सिद्ध करता है ऐसे ही अस्तित्व आदि धर्मभी अपने सहित घट आदि पदार्थको सिद्ध करते हैं और उसमें वे धर्म विशेषण तथा जिसमें धर्म हैं वह विशेष्य ऐसा ज्ञान उत्पन्न करादेना यही धोका वस्तुके साथ उपकार है और इसी अपने सहित विशेषणविशेष्यभावका ज्ञान करादेना एक कार्यजनकतारूप उपकारमें सबकी अभेदसे वस्तुमें स्थिति है: २ विशेष्यविशेषणभावसे स्थितिका ज्ञान उत्पन्न करादेना. ३ जिसमें अस्तित्व आदि धर्म वा गुण रहें वह वस्तु. ४ रहना वा स्थिति. ५ जिस भागमें अस्तिता आदि धर्म रहते हैं वह गुणी अथवा धर्मीका भाग वा देश. ६ भेदकी प्रधानताका सूचक सम्बन्ध. ७ संसर्गका विशेषण होके वस्तुमें रहना. ८ जिसके साथ वक्तव्य है उस वस्तुके साथ आत्मरूपता अर्थात् भेदका अभाव जो कथंचित् अभेदखरूप है. ९ सम्बन्धमें भेदकी अप्रधानता. १० परस्पर एक दूसरेसे विलक्षणता अथवा भेद. ११ किसी अपेक्षासे भेद और किसी अपेक्षासे अभेद यह दोनोरूप.
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