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हैं । यहां पर भी अभेदसहित भेद इस कथनसे ही संसर्गमें अभेद गौण और भेद मुख्य है यह तात्पर्य सिद्ध होगया । तथा जो अस्ति शब्द अस्तित्वधर्मस्वरूप घट आदि वस्तुका भी वाचक है । इस प्रकार एक शब्द वाच्यत्वरूपसे शब्द से सब धर्मोकी घट आदि पदार्थमें अभेदवृत्ति है. ८ इस पूर्वकथित रीतिसे पर्यायार्थिक नयके गौण होनेपर द्रव्यार्थिक नयकी प्रधानतासे काल आत्मस्वरूप तथा अर्थ आदि आठ प्रकारसे घट आदि पदार्थमें सब धर्मोकी अभेदसे स्थिति रहती है ।
द्रव्यार्थिकगुणाभावे पर्यायार्थिकप्राधान्ये तु नेयं गुणानामभेदवृत्तिस्सम्भवति । तथा हि-तत्र कालेन तावदभेदवृत्तिर्न सम्भवति, समकालमेकत्र नानागुणानां परस्परविरुद्धानामसम्भवातू; प्रतिक्षणं वस्तुनो भेदात् । सम्भवे वा तावदाश्रयस्य तावत्प्रकारेण भेदप्रसङ्गात् ॥ नाप्यात्मरूपेणाभेदवृत्तिस्सम्भवति नानागुणानां स्वरूपस्य भिन्नत्वात्; स्वरूपाभेदे तेषां परस्परभेदस्य विरोधात् ॥ नाप्यर्थेनाभेदवृत्तिः, स्वाश्रयार्थस्यापि नानात्वात्, अन्यथा नानागुणाश्रयस्यैकत्वविरोधात् ॥ नापि सम्बन्धेनाभेदवृत्तिः, सम्बन्धस्यापि सम्बन्धिभेदेन भेददर्श - नात्; यथा दण्डदेवदत्तसम्बन्धादन्यश्छत्रदेवदत्तसम्बन्धः ॥ नाप्युपकारेणाभेदः, अनेकगुणैः क्रियमाणस्य चोपकारस्य प्रतिनियतरूपस्यानेकत्वात्, अनेकैरुपकारिभिः क्रियमाणस्योपकारस्यैकत्वविरोधात् ॥ नापि गुणिदेशाभेदः, गुणिदेशस्यापि प्रतिगुणं भेदात्, तदभेदे भिन्नार्थगुणानामपि गुणिदेशाभेदप्रसङ्गात् ॥ नापि संसर्गेणाभेदः, संसर्गस्यापि संसर्गिभेदेन भेदात्, तदभेदे संसर्गिभेदविरोधात् ॥ नापि शब्देनाभेदः, शब्दस्यार्थभेदेन भिन्नत्वात्, सर्वगुणानामेकशब्दवाच्यतायां सर्वार्थानामेकशब्दवाच्यातापत्या शब्दान्तरवैफल्यापत्तेः॥ एवं तत्वतोऽस्तित्वादीनामेकत्र वस्तुन्यभेदवृत्तेरसम्भवे कालादिभिर्भिन्नानामपि गुणानामभेदोपचारः क्रियते ।
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और द्रव्यार्थिक नयकी गौणता तथा पर्यायार्थिक नयकी प्रधानतामें तो पदार्थ में धर्मोकी काल आदिद्वारा अभेदरूपसे स्थितिका सम्भव नहीं है | इसी असम्भवाको दर्शाते हैं जैसे - पर्यायार्थिकनयकी विवक्षासे उन आठों प्रकारोंमेंसे प्रथमकाल अभेदसे धर्मोकी स्थिति वस्तुमें सम्भव नहीं होती, क्योंकि परस्परविरुद्ध नानागुण पर्यायोंका एक ही कालमें होना असम्भव है और प्रतिक्षणमें वस्तुके परिणाम वा दशाके परिवर्तन से वस्तुके भेद होनेसे भी अभेदवृत्तिका असम्भव दृढ है । और एक कालमें गुणोंका सम्भव माननेसे भी उन गुणों के आश्रय होनेसे जितने गुणोंका वह द्रव्य आश्रय होगा उतनेही प्रकारके भेद उस द्रव्य या पदार्थ के हो जाएंगे क्योंकि गुण वा धर्मके भेदसे गुणी
१ कहनेवाला वा प्रतिपादक शब्द तथा अर्थ में और शब्द वाचक होता है. २ जो कहा जाय.' ( दशा ) मात्र से प्रयोजन रखनेवाला. ४ पर्यायकी प्रयोजन रखनेवाला. ५ वस्तुके स्वरूपका बदलना,
किसी प्रकारसे भिन्न माना जाता है. ६ आधार जिसमें गुण वा धर्म रहते हैं. ७ गुणका आधार पदार्थ.
वाच्यवाचकभाव सम्बन्ध रहता है उसमें अर्थ वाच्य ३ मृतिका आदि द्रव्यमें पिंड कपालं घट आदि पर्याय अपेक्षा न करके केवल मृत्तिका वा जीवआदि द्रव्यसे प्रतिक्षण में सूक्ष्मरूपसे पदार्थ बदलता है इससे वह
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