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वा धमीके भी भेद माने जाते हैं इसी रीतिसे आत्मरूप अर्थात् धर्मके स्वरूपसे भी धर्मोकी पदार्थमें अभेदवृत्ति नहीं है क्योंकि पर्यायार्थिक नयकी प्रधानतामें नाना प्रकारके गुणोंके खरूप भिन्न २ हैं । और गुणत्व अथवा धर्मत्व स्वरूपका अभेद माननेपर भी अस्तित्व नास्तित्व आदि धर्मोंका परस्परभेद होनेसे विरोध स्पष्ट ही है। ऐसे ही अर्थरूपसे भी धर्मोकी वा गुणोंकी अभेदवृत्ति नहीं है. क्योंकि परस्परभिन्न नाना प्रकारके गुणोंके आश्रय पदार्थ भी नाना प्रकारके भेदसहित हो जाते हैं, गुणोंके भेदसे गुणीका भी भेद युक्तिसिद्ध ही है, यदि ऐसा न माना जाय तो नाना प्रकारके गुणोंके आश्रयमें द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे जो एकत्व माना जाता है उसका विरोध होगा क्योंकि गुणोंके भेदसे भी यदि पदार्थमें अभेद है तो अन्य प्रकारसे एकत्व माननेकी क्या आवश्यकता है ? इस प्रकार सम्बन्धसे भी अभेदवृत्ति नहीं है, क्योंकि सम्बन्धीके भेदसे सम्बन्धका भी भेद देखा जाता है, जैसे दण्ड तथा देवदत्तके संयोग सम्बन्धसे छाता तथा देवदत्तका संयोग सम्बन्ध भिन्न है । ऐसे ही उपकाररूपसे भी अभेदवृत्ति वस्तुमें गुणोंकी नहीं है, क्योंकि अनेक गुणोंसे कियेहुये वा क्रियमाण अपने २ नियतरूपसहित उपकार भी अनेक हैं । और यदि उपकारोंकी अनेकता न मानी जाय तो अनेक उपकारियोंसे जो उपकार किया जाता है उसमें जो एकत्व माना गया है. उसका विरोध आवेगा। तथा गुणीके देशसे भी गुणोंकी वस्तुमें अभेदवृत्ति नहीं है, क्योंकि प्रत्येक गुणकी अपेक्षासे गुणीके देशका भी भेद माना गया है, और यदि प्रत्येक गुणके भेदसे गुणीके देशका अभेद मानो तो भिन्न पदार्थके जो गुण हैं उनके गुणीके देशका भी अभेदप्रसङ्ग हो जायगा । इसी प्रकारसे पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे संसर्गसे भी गुणोंकी अभेदवृत्ति नहीं है, क्योंकि प्रतिपर्याय संसर्गीके भेदसे संसर्गका भी भेद है,
और यदि संसर्गका भेद न माना जाय तो प्रत्येक पर्यायमें जो संसर्गीका भेद अनुभवसिद्ध ज्ञात होता है उसका विरोध आवेगा । इसी रीतिसे शब्दसे भी अभेदवृत्ति नहीं है । क्योंकि अर्थके भेद होनेसे शब्दका भी भेद अनुभवसिद्ध है, और यदि अस्तित्व नास्तित्व आदि सब गुणोंकी एकशब्दवाच्यता मानोगे तो सब अर्थोंकी भी एक शब्दवाच्यता ही जाननेसे अन्य भिन्न २ जो शब्दोंके प्रयोग किये जाते हैं वे सब व्यर्थ हो जाएंगे क्योंकि जब एक ही शब्द सब अर्थोंको कह सकता है तब अन्य
१ धर्मका आधारभूत पदार्थ. २ धर्मोंका निजखरूप. ३ सब गुणों में अनुगतरूपसे रहनेवाला गुणपना. ४ सब धर्मों में अनुगत धर्मपना. ५ सब धर्मोंका आश्रय पदार्थ वा द्रव्य जैसे घट अथवा जीव. ६ जिसमें सम्बन्ध रहता है वह पदार्थ. ७ जिनमें अस्तित्व आदि उपकार हैं वे घट आदि बस्तु. ८ जिस पदार्थका निरूपण विवक्षित है उससे भिन्न जैसे घटकी अपेक्षा भिन्न जीव. ९ गुणीके देशत्वरूपसे भेदाभाव. १० अस्तित्व अर्थसहित घटशब्दसे नास्तित्व अर्थसहित घटशब्द भिन्न है. ११ अर्थके भेदसे शब्द पर्यायकी अपेक्षासे है.
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