Book Title: Samraicch Kaha Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ भूमिका समराइच्चकहा के कथानक-स्रोत पर विचार करते समय दृष्टि 'गुरुवयण पंकयाओ सोऊण' (समराइच्चकहा) पर जाती है । इससे अवगत होता है कि हरिभद्र के पहले भी समराइच्चकहा की कथावस्तु का ज्ञान था और यह पहले से ही 'संग्गहणो गाहा' में अंकित थी। यह सत्य है कि समराइच्चकहा के कर्ता हरिभद्र ने समस्त आगमिक साहित्य का अध्ययन, अनुशीलन और अवगाहन कर अपनी कथाओं के लिए कल्पनाएँ, उपदेशतत्त्व एवं वर्णन प्रसंग ग्रहण किये हैं। परन्तु प्रधान रूप से उवासगदसाओ, विपाकसूत्र और भगवतीसूत्र से समराइच्चकहा के लिए अनेक कल्पनाएं और वर्णन-प्रसंग लिये गये हैं। इन गृहीत तत्त्वों को समराइच्चकहा में ज्यों के त्यों रूप में देखा जा सकता है। वसुदेवहिण्डी तो कथानक-योजना के लिए प्रधान स्रोत है । मुख्य कथा के लिए उपादानसूत्र यहीं से ग्रहण किया गया है । यह सत्य है कि हरिभद्र ने वसुदेवहिण्डी से कथासूत्र ग्रहण करने पर भी उसमें अपनी कल्पना का पूरा उपयोग किया है और कथा के ताने-बाने को पूरा विस्तार देकर नवीनता प्रदान की है । जिस प्रकार मणि खान से निकलने पर भद्दी और असुन्दर मालूम पड़ती है, पर वही जब खराद पर चढ़ा दी जाती है तो सुडौल और सुन्दर दिखाई पड़ने लगती है । यही तथ्य हरिभद्र के साथ लागू है, इन्होंने प्रधान कथासूत्र वसुदेवहिण्डी से ग्रहण किया है, किन्तु उसे इतने सुन्दर और कुशल ढंग से सजाया तथा विस्तृत किया है जिससे इनकी कथाशक्ति की निपुणता व्यक्त होती है।' समराइच्चकहा के साथ अन्य ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है १. समराइच्चकहा के प्रथम भव की कथा का स्रोत 'वसुदेवहिण्डी' का 'कंसस्स पुव्व भवो' कथानक है। २. समराइच्चकहा के द्वितीय भव में आया हुआ 'मधुबिन्दु' दृष्टान्त वसुदेवहिण्डी में 'विसयसुहोवमाए महुबिन्दुदिद्रुतं' नाम से आया है। ३. समराइच्चकहा के छठे भव का धरण और देवनन्दी का कथानक वसुदेवहिण्डी के 'इन्भदारयदुगकहा संबंधो' नामक कथा में ज्यों का त्यों मिलता है । धरण का चरित्र वसुदेवहिण्डी के नन्दिसेन के चरित्र से बहुत कुछ अंशों में मिलता है। कथा का उतार-चढ़ाव भी दोनों ग्रन्थों में समान है। ४. समराइच्चकहा में नवम भव में कालचक्र का वर्णन किया गया है । वसुदेवहिण्डी के 'उसभसामिचरियं' में यह कालचक्र ज्यों का त्यों मिलता है। ५. समराइच्चकहा में अनेक नगर तथा पात्रों के नाम भी वसुदेवहिण्डी से ग्रहण किये गये हैं। ६. समराइच्चकहा के द्वादश व्रत और अतिचारों का वर्णन हरिभद्र ने 'उवासगदसाओ' से ग्रहण किया है। ७. विपाकसूत्र में वणित विजयमित्र सार्थवाह की जलयात्रा समराइच्चकहा के धनसार्थवाह की जलयात्रा से समता रखती है। ८. समराइच्चकहा के चोर और पल्लीपतियों का वर्णन विपाकसूत्र के कुछ वर्णनों से प्रभावित है। ६. कर्म-परम्परा, पुनर्जन्मवाद और कर्मफल के निरूपण में हरिभद्र ने विपाकसूत्र से पूरी तरह सहायता ली है। १. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन पृ. १८७-१८८. समराइचचकहा के मूल स्रोत की विस्तृत जानकारी के लिए भी डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का यही ग्रन्थ देखिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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