Book Title: Samraicch Kaha Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 13
________________ भूमिका प्रकार निहित किया जाता है, जिससे पाटक के मन में जिज्ञासावृत्ति उत्तरोत्तर विकसित होती रहे। समराइच्चकहा : एक धर्मकथा हरिभद्र की समराइच्चकहा धर्मकथा है । धर्मकथा का लक्षण करते हुए स्वयं हरिभद्र ने कहा हैधर्म को ग्रहण करना ही जिसका विषय है, क्षमा, मार्दव, आर्जव, मुक्ति, तप, संयम, सत्य, शौच, आकिंचन्य (अपरिग्रह) तथा ब्रह्मचर्य की जिसमें प्रधानता है, अणुव्रत, दिग्त, देशव्रत, अनर्थदण्डविरति, सामायिक, प्रोषधोपवास, उपभोगपरिभोग व्रत तथा अतिथिसंविभाग छत से जो सम्पन्न है, अनुकम्पा, दया, अकामनिर्जरादि पदार्थों से जो सम्बद्ध हैं, वह धर्मकथा कही जाती है। अपनी अपनी रुचि के अनुसार लोग भिन-भिन्न कथाओं में अनुरक्त होते हैं। जो इहलोक तथा परलोक के प्रति अपेक्षायुक्त हैं, व्यवहारमार्ग में कुशल हैं, परमार्थरूप से सारभूत विज्ञान से रहित हैं, क्षुद्र भोगों को जो बहुत नहीं मानते हैं, भोगों के प्रति जिनकी लालसा नहीं है, वे कुछ सात्त्विक और मध्यम पुरुष ही आशयविशेष से सुगति और दुर्गति में ले जाने वाली, संसार के स्वभाव रूप चित्तभ्रम वाली, समस्त रसों के झरने से युक्त, अनेक प्रकार के पदार्थों (भावों) की उत्पत्ति के कारण संकीर्ण कथा में अनुरक्त होते हैं। जन्म, जरा, मरण के प्रति जिन्हें वैराग्य हो गया है, इतर जन्म में भी जिनकी बुद्धि में मंगल की भावना है, कामभोगों से जो विरक्त हैं, प्रायः पापों के संसर्ग से जो रहित हैं, जिन्होंने मोक्ष के स्वरूप को जान लिया है, जो सिद्धि-प्राप्ति के सम्मुख हैं, ऐसे सात्त्विक उत्तम पुरुष स्वर्ग और निर्वाणभूमि में आरोहण कराने वाली, ज्ञानी जनों के द्वारा प्रशंसनीय और समस्त कथाओं में सुन्दर, महापुरुषों के द्वारा सेवित धर्मकथा में अनुरागी होते हैं। धर्म के प्रति हरिभद्र का चित्त अत्यन्त आकृष्ट था। अनेक गाथाओं में उन्होंने धर्म की प्रशंसा की है। उनके कथानुसार-"जो व्यक्ति मध्यस्थ और पुण्यात्मा है, वह धर्म के प्रभाव को जानता हुआ सर्वज्ञ द्वारा उपदिष्ट धर्मकथा को जानता और सुनता है। आचार्य हेमचन्द्र ने समराइच्चकहा को सकलकथा कहा है । आचार्य उद्योतनसूरि के अनुसार समराइच्चकहा एक धर्मकथा है । धर्मकथा होते हुए भी समराइच्चकहा का यह वैशिष्ट्य है कि धार्मिक उपदेशों का कथा .. में समावेश होते हुए भी कथा धुंधली नहीं हुई है। कथा में धार्मिक उपदेशों के समावेश के कारण उसे धर्मकथा कहना अधिक उचित लगता है। पात्रों के आधार पर यह दिव्य-मानुष पात्रों से युक्त धर्मकथा है। धर्म कथाओं में धर्म, शील, संयम, तप, पुण्य और पाप के रहस्य के सूक्ष्म विवेचन के साथ मानवजीवन और प्रकृति की सम्पूर्ण विभूति के उज्ज्वल चित्र बड़े सुन्दर पाये जाते हैं। जिन धर्मकथाओं में शाश्वत सत्य का निरूपण रहता है, वे अधिक लोकप्रिय रहती हैं। इनका वातावरण भी एक विशेष प्रकार का होता है। यद्यपि सम्प्रदायों की विभिन्नता और देशकाल की विभिन्न ता के कारण धार्मिक कथा-साहित्य में जहाँतहाँ मानवता की खाई जैसी वस्तु दिखलाई पड़ेगी, पर यह सार्वजनीन सत्य नहीं है, क्योंकि प्राकृत धर्मकथा साहित्य में उन सार्वभौमिक और जीवनोपयोगी तथ्यों की अभिव्यंजना की गयी है, जिनसे मानवता का १. प्राकृत भाषा और साहित्य का पालोचनात्मक इतिहास, पृ. ४४८-४.९. २. जा उण धम्मोवायाणगोचरा खमामद्दवज्जवमुत्तितवसंजमसच्चसो यावि चण्णबंभचेर पहाणा अणुत्वयदिसिदेशाणत्थदंडविरई साबय पोसहोववासोवभोग परिभोगातिहि विभाग कलिया अण कंपाकामनिज्जराइपयत्थसंपउत्ता सा धम्मकहा त्ति। समराइचकहा, पृ. ३.. ३. समराइच्चकहा, पृ. ४. ४. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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