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भूमिका भारतीय कथा-साहित्य
साहित्य के एक महत्त्वपूर्ण अंग कथा-साहित्य का प्राची तम रूप ऋग्वेद के यम-यमी संवाद, पुरुरवा उर्वशीवत्त, सरमा और पणि संवाद जैसे लाक्षणिक संवादों, ब्राह्मणों के सुपर्णकाद्रव जैसे रूपकात्मक आख्यानों, उपनिषदों के सनत्कुमार-नारद जैसे ब्रह्मर्षियों की भावमूलक आध्यात्मिक व्याख्याओं एवं महाभारत के गंगावतरण, शृंग, नहुष, ययाति, शकुन्तला, नल आदि जैसे उपा यानों में उपलब्ध होता है। आगे चलकर इनका क्रमिक विकास दृष्टिगोचर होता है । व्यवस्थित रूप में भारतीय कथा-साहित्य की सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन पुस्तक पंचतन्त्र है । पंचतन्त्र का विश्व की अनेक भाषाओ में छठी शताब्दी से ही अनुवाद प्रारम्भ हो गया था। विश्व-साहित्य पर पंचतन्त्र का अत्यधिक प्रभाव प है। पंचतन्त्र के समान ही हितोपदेश की नीतिकथाएँ प्रसिद्ध हुई। लोककथाओं में पैशाची भाषा में लिखित बृहत्कथा ने भारतीय साहित्य को सर्वाधिक प्रभावित किया । बृहत्कथा के तीन संस्कृत रूपान्तर उप तब्ध होते हैं-(१) बुद्धस्वामीकृत बृहत्कथाश्लोकसंग्रह, (२) क्षेमेन्द्रकृत बृहत्कथामंजरी तथा (३) सोमदेव त कथासरित्सागर । वेतालपंचविंशतिका, सिंहासनद्वात्रिशिका, शुक्रसप्तति, अमितिभवप्रपंचकथा, त्रिषष्ठि ालाका चरित, बृहत्कथाकोष, इत्यादि अनेक कथा-ग्रन्थों ने भारतीय कथासाहित्य की श्रीवृद्धि में चार चांद लग ये।
बौद्धकाल में भी जातक-कथाओं के रूप में कहानी-साहित्य का अच्छा विकास हुआ। जातक-कथाओं में सुन्दर कल्पना के द्वारा गम्भीर तत्त्वों को हृदयंगम कराया गया है। अतः कलात्मक दृष्टि से ये कथाएँ हमारे लिए महत्त्वपूर्ण देन हैं।
अर्द्धमागधी आगम-ग्रन्थों में छोटी-बड़ी सभी प्रकार की सहस्रों कथाएँ प्राप्त हैं। प्राकृत आगम साहित्य में धार्मिक आचार, आध्यात्मिक तत्त्व-चिन्तन तथा नी त और कर्त्तव्य का प्रणयन कथाओं के माध्यम से किया गया है । सिद्धान्त-निरूपण, तत्त्वचिन्तन तथा नीति और कर्तव्य का प्रणयन कथाओं के माध्यम से किया गया है । गूढ़ से गूढ़ विचारों और गहन से ग न अनुभूतियों को सरलतम रूप में जन-मन तक पहुँचाने के लिए तीर्थंकरों, गणधरों एवं अन्य आचार्यों ने कथा का आधार ग्रहण किया है । तिलोयपण्णत्ति में तीर्थंकरों के माता-पिताओं के नाम, जन्मस्थान, आयु, तपस्थ न आदि का निरूपण है। चरितग्रन्थों के लिए इस प्रकार के सूत्ररूप उल्लेख ही आधार बनते हैं। ज्ञात धर्मकथा, उवासगदसा, आचारांग प्रभृति ग्रन्थों में रूपक और उपमानों के साथ घटनात्मक कथाएं भी आयी हैं, जिनके महत्त्वपूर्ण उपकरणों से कथाओं का निर्माण विस्तृत रूप में हुआ है । टीका, नियुक्ति और भाष्य ग्रन्थों में कथा-साहित्य का विकास बहुत
१. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री : हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, प.१। १. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री : प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ. ४३८-४३९.
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