Book Title: Samraicch Kaha Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 14
________________ २ [समराइच्चकहा पोषण होता है । धर्मकथा का प्रणेता धर्मोपदेशक से भिन्न है। वह शुष्क उपदेश नहीं देता और न वह किसी धर्मविशेष का आचरण करने की बात ही कहता है । अपनी कथा के माध्यम से कुछ ऐसे सिद्धान्त या उपदेश पाठक के सामने छोड़ देता है, जिससे पाठक स्वयं ही जीवनोत्थानकारी तथ्यों को पा लेता है। इसमें जनता की आध्यात्मिक आवश्यकताओं का निरूपण, भावना जगत् को ऊँचा उठाने का प्रयास एवं जीवन और जगत् के व्यापक सम्बन्धों की समीक्षा मार्मिक रूप में विद्यमान रहती है।' डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का कथन है कि हरिभद्र ने यद्यपि समराइच्चकहा को धर्मकथा नाम दिया है, पर आद्योपान्त लक्षण मिलाने से वह संकीर्ण कथा ठहरती है। अर्थ और काम पुरुषार्थ की अभिव्यंजना प्रायः प्रत्येक भव की कथा में हुई है। धर्मतत्त्व के साथ अर्थ और कामतत्त्व का सम्मिश्रण भी दूध में चीनी के समान हुआ है । वर्णनात्मक शैली का निखार संकीर्ण कथा में ही सम्भव है । आचार्य हरिभद्र के अनुसार--- "जो धर्म, अर्थ तथा कामरूप त्रिवर्ग का ग्रहण करने से सम्बद्ध है, काव्यकथा रूप से ग्रन्थों में विस्तार से रची गयी है, लौकिक अथवा वैदिक शास्त्रों में जो प्रसिद्ध है, उदाहरण, हेतु तथा कारण से जो संयुक्त है, उसे संकीर्ण कथा कहते हैं। धर्म के साथ अर्थ और कामतत्त्व के सम्मिश्रण के कारण यद्यपि डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इसे संकीर्णकथा माना है तथापि हरिभद्र का मूल उद्देश्य कथा के माध्यम से धर्मतत्त्व का समुपदेश देना ही था, अतः उनके द्वारा इसे धर्मकथा नाम दिया जाना उचित ही है। समराइच्चकहा का मूल स्रोत हरिभद्र ने अपनी प्राकृत कथाओं के सृजन में अपने से पूर्ववर्ती सभी परम्पराओं से कुछ-न-कुछ सामग्री ग्रहण की है । युगगुरु के रूप में पर्यटनजन्य भारतव्यापी अनुभव प्राप्त कर कथाओं में विभिन्न देशों के आचार-विचार और रीति-रिवाजों को स्थान दिया है । शंकर, कुमारिल, दिङ्नाग और धर्मकीति के दार्शनिक विचारों का प्रभाव भी हरिभद्र पर कम नहीं है । अतः यह मानना पड़ेगा कि हरिभद्र ने अपनी कथाओं के स्रोत मात्र प्राकृत साहित्य से ही ग्रहण नहीं किये हैं किन्तु संस्कृत साहित्य के विपुल और समृद्ध भण्डार से भी सहायता ग्रहण की है। कथा-स्रोतों के अन्वेषण के लिए निम्नांकित परम्पराओं का अवलम्बन करना आवश्यक है। इन आधार-ग्रन्थों से कथानक-सूत्रों के अतिरिक्त अनेक कल्पनाएँ, वर्णन और प्रसंग भी ग्रहण किये गये हैं १. पूर्ववर्ती प्राकृत साहित्य। २. महाभारत और पुराण । ३. जातक कथाएं। ४. गुणाढ्य की बृहत्कथा। ५. पंचतन्त्र । ६. प्रकरण ग्रन्थ और श्रीहर्ष के नाटक । ७. दण्डी, सुबन्धु और बाण के कथाग्रन्थ । १. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का मालोचनात्मक परिशीलन, पृ. १०९ २. समराइचकहा, पृ. ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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