Book Title: Sambodhi 2007 Vol 31
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 77
________________ Vol. XXXI, 2007 संस्कृत छन्दःशास्त्र में हेमचन्द्राचार्य का प्रदान स्वयम्भूच्छन्दस् है । स्वयम्भूच्छन्दस् के इस त्रुटित पद्य के पूर्व भाग में निरूपित कई छन्द लुप्त होने की सम्भावना है, लेकिन इन लुप्त छन्दों की प्राप्ति छन्दोऽनुशासन से हो सकती हैं । छन्दोऽनुशासन में विद्युन्मालिका से पूर्वनिरूपित लय छन्द अन्यत्र प्राप्य नहीं है। सम्भव है कि उसका मूलस्रोत स्वयम्भूच्छन्दस हो । इस प्रकार हेमचन्द्राचार्य ने लुप्त छन्दों को अपने इस विशालकाय ग्रन्थ में स्थान देकर उन्हें सुरक्षित रखा है। हेमचन्द्राचार्य का एक अन्य उल्लेखनीय प्रदान शेषजाति के छन्दों का निरूपण है । सामान्यतः एकाक्षरा उक्ता से छब्बीस अक्षरों की उत्कृति जाति के वर्णवृत्तों के बाद दण्डक छन्द का निरूपण होता लेकिन हेमचन्द्राचार्य ने इन दोनों के बीच शेष जाति के आठ छन्दों को स्थान दिया है. जिनकी अक्षरसंख्या २७ से लेकर ४५ तक है ।२५ ये छन्द २७ या उससे अधिक अक्षरयुक्त होने पर भी दण्डक नहीं हैं, क्योंकि दण्डक छन्द में निश्चित अक्षरसमूह या गण का आवर्तन होता है, जो शेष जाति के छन्दों में नहीं है। हेमचन्द्राचार्य ने दण्डक छन्द के भी भेद-प्रभेदों की चर्चा की है और उसके उन्तीस प्रकार लक्षित किये हैं ।२६ दण्डक और शेष जाति के अत्यन्त दीर्घ और दुरूह छन्दों के उदाहरणों की रचना अत्यन्त श्रमसाध्य है, लेकिन हेमचन्द्राचार्य ने अपनी कवि प्रतिभा से इन दीर्घ छन्दों के उदाहरण भी रचे हैं। हेमचन्द्राचार्य ने छन्द के गणविधान का ही निर्देश नहीं किया है, उसके अन्तरङ्ग स्वरूप को भी सूक्ष्म दृष्टि से परखा है । वर्णवृत्त और मात्रावृत्त छन्दों के पारस्परिक सम्बन्ध को प्रकट करने में उनकी सूक्ष्म दृष्टि का पत्ता चलता है । ग्यारह अक्षर का भ्रमरविलसित छन्द वर्णवृत्त है और मात्रावृत्त की दृष्टि से वह वानवासिका भी है । इस प्रकार के सूक्ष्म निरीक्षण हेमचन्द्र का निजी प्रदान है । जैसे, छन्द-नाम अक्षरसंख्या गणविधान स्थान (१) रथोद्धता रनरलगा अपरान्तिका (२) भद्रिका ११ ननरलगा उत्तरान्तिका (३) तोटक सससस मात्रासमक (४) दोधक भभभगग उपचित्रा हेमचन्द्राचार्य ने मात्रावृत्त छन्दों के प्रस्तार का गणित देकर प्रत्येक मात्रावृत्त में निहित विविध वर्णस्वरूपों की सम्भावनाओं का संकेत दिया है। उदाहरण के लिए वैतालीय और आर्या छन्द के प्रस्तार की चर्चा करते हैं । वैतालीय छन्द में विषम पाद की छ: और सम पाद की आठ मात्राओं के बाद रलग गणमाप में पाँच अक्षर आते हैं । विषम पाद की इन छ: मात्राओं के आठ वर्णस्वरूप और समपाद की आठ मात्राओं के तेरह वर्णस्वरूप बनते हैं । हेमचन्द्राचार्य ने इसके प्रस्तार की गिनती करके १०,८१६ विकल्पों की सूचना दी है।३२ इस प्रकार मात्रावृत्त आर्या छन्द के पूर्वार्ध में ३० और उत्तरार्ध में २७ मात्राएँ होती हैं । छन्द के नियमानुसार आर्या में कम से कम ३० और अधिक से अधिक ५५ अक्षर आ सकते हैं । इन अक्षरों के लघुगुरु स्वरूपभेद से आर्या के ८,१९,२०,००० विकल्प बनते हैं ।३३ आर्या के पथ्या

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