Book Title: Sambodhi 2007 Vol 31
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 99
________________ Vol. XXXI, 2007 गुजरात के चौलुक्य - सोलंकी कालीन अभिलेखों में... सामंत था (दु० के शास्त्री, गु० भ० रा० इ० पृ० ४२४) । लवणप्रसादने भी गुर्जरराज्य के रक्षणकार्य और पराक्रम किये । उसका राज्य रामराज्य से भी अधिक (लोकप्रिय) था । (श्लोक०१२) उसने वर्धमान (वढवाण) गाँव के नजदीक युद्ध करके प्रतिस्पर्धी का गर्व उतारा था । उसने अपनी तेज तलवार से युद्धयज्ञ में नडूल के नायक को एसा बलपूर्वक प्रहार किया था कि उस भयसे अभी भी यह पर्वत कंपायमान है। उसने तुरुष्क राज के आक्रमण को अवरुद्ध करके अपने राज्य का रक्षण किया था । वह धाराधीश्वर, दक्षिणेश्वर और मरूभूपों की विशाल सेना जलप्रवाह के रूप एवं त्रास केसामने बड़े पर्वतरूप होकर गुर्जर राज्य को सुरक्षित किया (श्लोक १८, श्लोक- ४५) । इस यद्धयज्ञ में उसने अपनी प्राणाहति देकर मृत्युरूप कर (Tax) दे दिया । इसके पुत्र वीरधवलने भी मालवा और दक्षिण के राजाओं के आक्रमण से अपने राज्य को बचाया था। (श्लो० ४५) सोमेश्वरने की० कौ० में (सर्ग ४-६) लवणप्रसादवीरधवल के ये संयुक्त पराक्रम का विस्तृत वर्णन किया है यह एक-दुसरे के पूरक है, पुनरावर्तन नहीं। इस पराक्रम को मुख्य घटना के रूप में अरिसिंह और हरिहरने अपने महाकाव्य नाटक की रचना की है ।२४ और श्री० क० मा० मुन्शीने चर्चा की है। ऐसा ऐतिहासिक निरूपण सबसे प्रथम, व्यवस्थित और विश्वासपात्र होने से कइ इतिहासकार विद्वानोंने उस पर काफी समीक्षा की है यह सोमेश्वर को महत्ता देनेवाली बात सिद्ध होती है। देवगिरि के यादवराज सिंघन के आक्रमण को लवणप्रसादने पीछे हठाया था (श्लोक० २०) उसको याद करके वीरधवलने अचानक हल्ला करके नर्मदातट पर बसा हुआ भडोंच का राजा शंख (सिंघनराजपुत्रे) का गाँव ले लिया था। इसका संदर्भ आंबेगाँव के शक सं० ११६२ (सन् १२३१) के शिलालेख में निर्दिष्ट सिंघन के आक्रमण के अनुसंधान में होगा । ये सभी युद्धों का विस्तृत ऐतिहासिक विवेचन श्री दुर्गाशंकर के० शास्त्रीने किया है ।२५ लवणप्रसादने वढवान नजदीक युद्ध में शत्रु को मारकर पीछे हटाया और उसी नगर के नजदीक में विशाल भव्य मंदिर श्री कात्तिकेय कुमार का बनवाया था। यह मन्दिर सागर जैसा अत्यन्त समृद्ध और अमृत बरसाने वाले चंद्र से भी ज्यादा तेजस्वी और ऊँचा था। यहाँ इसका श्लोक के शब्दों पर समझने के लिये नजर करते हैं : सविधे वर्धमान [स्य] स्पर्द्धमानं पयोधिना । अधःकृत सुधासारं यः कुमारमकारयत् ॥ २१ ॥ इससे विशाल और अमृतजलवाला बडा जलाशय लवणप्रसादने करवाया ऐसा भी अभिप्रेत होता श्लो० २४ में 'नर्मदातट निविष्ट विषया' इस पदसे अनुमान करके भडोंच-भृगुकच्छ जो गुजरात के दक्षिण भागमें युद्ध लवणप्रसाद के संदर्भ में होने का अनुमान है। नर्मदा तट के प्रदेश के राजा सिंघन के आक्रमण को लवणप्रसादने पीछे हठाया था । श्लोक २५ में दशरथ राजा के पुत्र काकुत्स्थ जैसा, पृथ्वी का पालन करनेवाला वीरधवलने शत्रु राजाओं का अभिमान निगीरण कर दिया और उसके शुभ्रपवित्र यश के पूरमें कुलटाओं की अभिसरण कला कामविमुख समान होने से लुप्त होने लगी थी । अर्थात् ये दोनों पिता-पुत्र के राज्यमें सामाजिक परिस्थिति रामराज्य जैसी थी। चोरी, शत्रु का आक्रमण इत्यादिका

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