Book Title: Sambodhi 2007 Vol 31
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
Vol. xxxI, 2007
गुजरात के चौलुक्य - सोलंकी कालीन अभिलेखों में...
शि० नं. २
की० क० पृ० ३३ शत्रु० शि० ले०१, श्लो ७ = श्लाघ्यो न वीरधवल० = मल० नरेन्द्रप्रभसूरि, व० प्र० श्लोक २१; सु० की० क० पृ० ३२ शत्रु० शि० ले०१, श्लो ८ = अनंतप्रागल्भ्यः [स]जयति = मल० नरेन्द्रप्रभसूरि, व० प्र० श्लोक २२; सु० की० क० पृ० ३२
शि० ले०१, श्लो १ = व० प्र०१, श्लोक० २७. शि० नं० २ श्लोक १ आरंभिक मंगलाचरण का = उदयप्रभसूरि,
उपदेशमाला कर्णिका, श्लो०२ का पूर्वार्ध (२) शत्रु० शि० नं. २ श्लोक ३ त्यागारिधिनि = मलधारी नरेन्द्रप्रभसूरि, व० प्र०
श्लो०१०३; सु० की० क० पृ० २९ श्लोक ३(६) मल्लदेव इति देवताधिप = उदयप्रभाचार्यकृत सु० की०
क०, श्लो० ११४, पृ० १०. (४) शत्रु० शि० नं. २ श्लोक ३(९) तेज:पाल सचितिलको = मलधारी नरेन्द्रप्रभसूरि, व० .
प्र० श्लो० २७; सु० की० क० पृ० २५ १६. गि० व० आचार्य, गु० ए० ले० नं० २०७ और २०९; भो० ज० सां० म० व० सा० मं० अहमदाबाद-१९५७,
पृ० ७६; मुनि श्रीपुण्यविजय(संपा) सु०की०क० पृ०४४-४५, ४९-५०; विभूति वि० भट्ट, सो०कृ०, पृ० १०८-११४ १७. दु० के० शास्त्री, गु० म० रा० इ०, पृ० ४२७ १८. गु० ऐ० ले० भा०३, ले० नं० २०९, श्लो० १४-१६, गु० ए० ले० भा-२, ले० नं० १६७, श्लो० २८,
AshokKumar Majumdar, Chaulukayas of Gujarat', Bombay, 1956 pp. 163ff. शि०ले० १, श्लो० २, ३ और ५ में शार्दूलविक्रीडित, (२) श्लो० ६,७, और ९ में आर्या, (३) श्लो०७ और १० वसंततिलका, (४) श्लो० ३ स्रग्धरा, (५) श्लो० ४ शिखरिणी (६) श्लो० ६ रथोद्धता, (७) श्लो० १३ उपजाति
छंद में हैं। २०. Angls of Blhandarkar Oriental Reasearch Institute, Poone, Vol-9, ले० नं० २, पृ० १८०, सु०
की० क०, पृ० ७६।३.४; भो० ज० सां०, म० व० सा० मं० पृ० १०८; डो० हीरानन्द शास्त्री, रुइन्स ओफ डभोई or दर्भावती, गा० ओ० सि० बरोडा, १९४०, Page, १२-१८, गु० ए०
ले० भा० ३, नं० २१५; भो० ज० सां० उपर्युक्त, पृ० १७९, विभूति वि० भट्ट, सो० कृ० पृ० ११४-११९ __ सु० की० क० मालधारी श्री नरेन्द्रप्रभसूरि, व० प्र० श्लो० ४८, पृ० २६, भो० ज० सां० उपर्युक्त, पृ० १८५ (सुभटवर्मा
सुवर्णकलश ले गया था ।) २३. सोमेश्वरदेव, सु० उ०, १५/३५-३६; की० कौ० ४।४९-६५, सु० की० क० श्लो० १७५, पृ० १६; दु० के० शास्त्री,
उपर्युक्त, पृ० ४१४-१५,२५ इत्यादि । विभूति वि० भट्ट की० कौ० प० पृ० १५, १७, ३८-४० २४. हरिहर, शंखपराभव व्यायोग, गा० ओ० सिरीझ, बरोडा, पृ० १५; अरिसिंह, हम्मीरभदमर्दन, अं०२, पृ०११, क० मा०
मुन्शी, 'चक्रवर्तीगूर्जरो', मुम्बई, पृ० ३४३ २५. दु० के० शास्त्री, उपर्युक्त, पृ० ४२९-४३१, ३३६ इत्यादि, डॉ० हीराचंद, उपर्युक्त, पृ० ९; भोज०सां० उपर्युक्त,
पृ० १८०
Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168