Book Title: Sambodhi 2007 Vol 31
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 100
________________ 94 विभूति वि० भट्ट SAMBODHI भय नहीं और किसी चीज की कमी नही थी उसका कारण राजा की दानवीरता-धर्मवीरता थी। जयसिंह से लेकर गुजरात के प्रत्येक राजाने मालवा या धाराधीश्वर के और दक्षिण के मारवाड के राजाओं के आक्रमणों का सामना किया, विजय भी पायी थी उसी तरह अपने पिता और दोनों जैन मंत्रीओं के बाद वीसलदेवने वीरतापूर्वक युद्ध में सामना करके धारानरेश और दक्षिण के राजा को परास्त किया था। (श्लोक ४५.)और उसने सिंधु तीर पर वीरव्रत धारण किया (श्लोक ५२-५९) करीब २१ श्लोकों (श्लोक ८०१०२) में वीसलदेव के गुण-पराक्रमों और सुकृतों की प्रसंशा है । वह अपने बल -पराक्रम से गुजरेश्वर बना । उसके राज्यमें जैनधर्म जैसा ही शैव, स्मार्त धर्म का विकास और आदर था । उसने कुछ शिवमंदिर नये बनवाये और पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था । (श्लोक० ९२) उसको डो० श्री सांडेसरा सूर्यमंदिर से पहचान देते हैं।२६ हमारी प्रस्तूत प्रशस्ति का सादेब का पुत्र वामदेवने मूलस्थान नामका सूर्यमंदिर बनाया है (श्लोक १११) यही मलनाथ वैद्यनाथ का भव्य प्रासाद होगा. जिसका प्रासाद और प्राकार का जीर्णोद्धार वीसलदेवने करवाया हो ऐसा पूर्वापर श्लोकों के संदर्भ में अनुमान कर सकते है । दुसरा हरशिव मंदिर कैलास शिखर जैसा ऊँचा, तेजस्वी मंदिर और प्राकार-किल्ले का जीर्णोद्धार कामदेव के नये अवताररूप (वीसलदेव) ने करवाया था । (श्लोक ९४-९८) । वह ब्राह्मणों को नित्यदान करता था इसलिये कल्पलता की वहाँ नित्य अभिवृद्धि होती थी। उसके राज्य में सभी ब्राह्मणों के वेद मंत्रोच्चार से, यज्ञ मंत्रों से और प्रसंशा के उच्च स्वर सुनाई देते थे । वीसलदेव व्याकरणशास्त्र (श्लोक९७) आयुर्वेद (श्लोक-९८) और नीतिशास्त्र का ज्ञाता और चारित्र्यशील था । ऐसा ये तूटक श्लोकों से प्रतीत होता है । इसमें श्लिष्ट पदावली भी प्रयुक्त की गई है। लवणप्रसाद-वीसलदेव के कुल पूर्वजों के नाम-पराक्रम पर विशेष ध्यान केन्द्रित हुआ है और भीमदेवादि एवं मंत्री परंपरा का संदर्भ भी देना स्थानसंकोच और अप्रस्तत समजकर सोमेश्वरने है। और वस्तुपाल के मृत्युबाद करीब २२ साल के बाद की सोमेश्वर की यह प्रशस्तिस्तवना में प्रौढि और अलंकृत शैली ज्यादा समृद्ध है। इसके पहले की उसकी रचनाओं में से भी कुछ बात यहाँ समाविष्ट हो यह भी स्वाभाविक है। (१) वैद्यनाथ प्रासाद प्रशस्ति (वै० प्र०), श्लोक० १५, की० कौ० २०११ की, (२) वै० प्र०,श्लोक-४० के बाद का लाट-गोध्रह राजाओं की चडाइ- आक्रमण का उल्लेख, की० कौ० सर्ग ४ की और (३) वै० प्र० श्लोक० २४ = की० कौ० ४। ४९-५३ की याद दिलानेवाले हैं। वैद्यनाथ प्र० के श्लोक इसी कवि की अन्य कृतिओं में उपलब्ध होने से इस प्रशस्ति के कुछ तूटक श्लोक पूरे पढ़ सकते हैं, जैसे (१) वै० प्र० श्लोक-६ = की० कौ० २ । २, (२) वै० प्र० श्लोक ९ = की० कौ० २ । ६३, (३) वै० प्र० श्लोक १८ = व० प्र० की० कौ० २।६९, (४) वि० प्र० श्लो० २५ = आ० प्र० श्लो० २७, लेखांक ३, श्लोक ९, गि० प्र एवं पुरातन प्रबन्धसंग्रह में सोमेश्वर के मुख से बोला गया है । इसी वै० प्र० के दो श्लोक जल्हण की 'सूक्ति मुक्तावली' में उद्धृत किया है ऐसा माना जाता है लेकिन इस खंडित प्रशस्ति में ढूंढना बहुत मुश्किल है । प्राग्वाट वंश के चंडसिंह का पुत्र... ग को राजाने किल्ले का रक्षक, "वैद्येशित्री" नाम का था. ड दिया

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