Book Title: Sambodhi 2007 Vol 31
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 94
________________ 88 विभूति वि० भट्ट SAMBODHI का सामंत, सोमदेव का पुत्र सोमसिंह और मेवाड़ के गुहिलवंश का राजा रणसिंह थे दोनों भीमदेव (२) के सामंत थे। नेमि-अम्बिका की कृपा से अर्बुदाचल जैसी अचल अमर रहनेका और कल्याणकारिणी होने के आशीर्वाद से यह प्रशस्ति पूर्ण होती है । इस ७४ श्लोकों की प्रशस्ति में विविध प्रकार के १३ छंदो का प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, यमकादि शब्दालंकार के बिना कोई श्लो नहीं है और उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकादि अर्थालंकार के प्रयोग करने की कोई तक छूटी नहीं है । छंद-अलंकारादि से विभूषित 'कवि समय', पौराणिक-ऐतिहासिक उल्लेखों से भरी हुई इस प्रशस्ति के बारे में पं० श्री विश्वेश्वरनाथ रेउ, श्री गौरीशंकर ओझा, प्रो० गांगुली, श्री अशोककुमार मझूमदार, श्री दु० के० शास्त्री इत्यादि अनेक इतिहासविदों ने इस प्रशस्ति के आधार पर ही चर्चा की है। इस कवि की यही महत्ता और प्रशस्ति का बड़ा महत्त्व है इसलिये अनुस्नातक अभ्यास में इसे पढीपढायी जाती है। श्री नागेन्दगच्छीय श्री विजयसेनसूरिने वि०सं० १२८७ वर्षे फाल्गुन वद ३ रवि दिने प्रतिष्ठा की थी । शत्रुज्जय (पालिताणा) गिरिशिखरोपरि प्रतोलिका = संञ्चारपाजा प्रशस्ति २५ :- शत्रुजय पर्वत पर मंत्री वस्तुपाल-तेजपालने कुल बारह संपूर्ण और तेरहवी आधी यात्रा की । वस्तुपाल-तेजपालने भव्य जिनप्रासाद के सामने प्रासाद की दोनो बाजु पर 'वाघणपोल' नामक छोटा आने-जाने का रास्ता-प्रतोली बनवायी थी। इसके बारे में शिलालेख की नोंध मिलती थी पर शि०ले० नहीं मिलते । इसका अन्वेषण कीं सालों से प्रो० काथवटे और श्री वल्लभजी आचार्य- कुछ नोंध दी थी। बाद में श्री पुण्यविजयजीने शत्रुजय के ये दोनों शि० ले० का व्यवस्थित संशोधन-संपादन कार्य के साथ उसका गुर्जर सारांश भी प्रकट किया। इसकी व्यवस्थित चर्चा और महत्ता इस लेखिकाने की है ।१३ ये दोनों शि० ले० वि० सं० १२८८, पोष सुद १५, शुक्र, यानि जनवरी ९, ई० सन् १२३२ है। पहला शि० ले० पद्यात्मक और दुसरा गद्यपद्यात्मक । दोनों शि० ले० के आरंभ एक सरिखे गद्यात्मक वर्णन से हैं। इनमें प्रतोलिका के बारे में विशेष बात जानने को मिलती है। बाकी जो श्लोकों दोनों शि० ले० में है वे उस समय के प्रचलित सोमेश्वर और उसके समकालीन विशेष तो मालधारी श्री नरेन्द्रप्रभसूरि और अन्य कवि के श्लोकों उद्धृत किये हैं । इनमें जैन यात्राधाम में जैनकवि के उपरांत सोमेश्वरदेव ब्राह्मण कवि के श्लोकों की पसंदगी की गयी है यही कवि की बडी महत्ता और प्रसिद्धि की द्योतक है। इनमें श्लोंको का कर्तृत्व प्रस्तुत नहीं किये हैं लेकिन प्रसिद्धि से पहचान की गयी है। (पहले शि०ले० के पद्य भागमें कुल १३ श्लोकों में से २ श्लोक कवि सोमेश्वरदेवने उद्धृत किये हैं ।) १ देव स्वाथीकष्ट... श्लो० ३ प्रबन्ध कोश, श्लो० १६८, पृ० ५९ में सोमेश्वर कर्तृक है लेकिन वही श्लोक नरेन्द्रप्रभसूरिस्कृत गिरनार प्रशस्ति ले० ४, श्लो० ९, सुकी० क० पृ० ५२ और यही कवि की दूसरी व० प्रशस्ति, श्लो० २७, सु० की० क०, पृ० ३२ पर उद्धृत है । २ दुस्थत्वेन कर्थ्यमान... श्लो० १० = आ० प्र० श्लो० ४५,

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168