Book Title: Samaysaar Kalash Tika Author(s): Mahendrasen Jaini Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ (४) फालतू का कर्म बंध कर जाते हैं। आत्म शान्ति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें विकल्पों को निरर्थकता समझ में आनी चाहिए कि उनके आधीन काम होने का नियम नहीं और साथ ही साथ यह भी कि हमारे द्वारा उठाया गया एक भी विकल्प बेकार नहीं जाता, प्रत्येक की हमें भारी कीमत चुकानी पड़ती है। भूतकाल तो चला गया, वह तो मुर्दा है उसके बारे में हम क्यों सोचें और भविष्य के बारे में विचार भी फालतू हैं क्योंकि कोई भी काम हमारी इच्छा के आधीन होता नहीं, हमारे विकल्पों के आश्रित कुछ भी तो नहीं तो हम मात्र वर्तमान में ही क्यों न रहें। जो कुछ भी वर्तमान में घट रहा है उसे देखते जानते रहें। (४) चौथी अज्ञान ।। पर-पदार्थों में कत्तत्व बुद्धि की है। है तो यह जानस्वरूप; ज्ञाता दृष्टा रूप रहने के सिवाय आत्मा कुछ भी तो नहीं कर सकता पर क्योंकि स्वयं को ये पहचानता नहीं, मात्र ज्ञान रूप रहने के अपने कार्य व पुरुषापं को जानता नहीं अत: पर्याय में जो कुछ भी घट रहा है उस सबका करने वाला स्वयं को मान लेता है और इस मिथ्या कर्ताबुद्धि के कारण इसका सारा पुरुषार्थ जाता बनने में नहीं वरन् चौबीस घंटे कुछ न कुछ उधेड़ बन करने में ही लगा रहता है । वस्तु स्थिति यह है कि इसके करने के आधीन कुछ भी नहीं। यदि पर पदार्थों का परिणमन इसके विकल्पों के या इसके करने के ही आश्रित होता तो इसकी सर्वदा हो सारी इच्छाओं को पूर्ति होनी चाहिए थी पर ऐसा होता कभी देखा नहीं गया। कदाचित् कभी इसकी इच्छा और कर्म के वैसे ही उदय का संयोग बैठ जाता है तो ये कहता है कि मैंने किया। अपने करनेपने के विस्तार में इसके ऐसा अनुभव में आता है मानो सारा संसार इसके चलाने से ही चल रहा हो। यदि यह कर्म का कार्य करना छोड़ कर (कर्म का कार्य कर थोड़े ही सकता है ये, मात्र मानता है ऐसा कि 'मैं करता हूँ तो इस मूठी मान्यता को छोड़ कर) शाता बन जाए तो भी सारा संसार चलेगा तो अपनी धुरा पर ही, इसको तो खत्म होना नहीं, हां, इस अज्ञानी का संसार अवश्य खत्म हो जाए, जन्मों-जन्मों के सारे इसके दुख आत्यंतिक क्षय को प्राप्त हो जाएं पर यह बात इसकी समझ में बैठतो नहीं। (५) पांचवीं अज्ञानता भगवान को कर्ता बनाने की है। अपनी इच्छा के अनुकूल इसे कर्म का कार्य होता दीखता है तो ये कहता है मैंने किया और कदाचित् स्वयं से होता न दीखे, अपनी बाशाबों पर पानी फिरता दिखाई दे तो देवी देवताओं को अपने से अधिक शक्तिशाली समझPage Navigation
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