Book Title: Samaysaar Kalash Tika Author(s): Mahendrasen Jaini Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ में अपना परिणमन करता हूँ तो उपचार से ऐसा कहा जाता है कि उसने ऐसा कर दिया पर उपचार झूठा हो होता है, मेरा बिगार सुधार 'मेरे हो आधीन है।' पर मुझे सुखी दु.खो कर नहीं सकता, पर मुझे कषाय करा नहीं सकता' ऐसा मानने पर भी पर से बचाव इसीलिए किया जाता है क्योंकि अभी मुझमें आत्मबल की इतनी कमी है कि उसकी मौजूदगो में मैं उसको लक्ष्य करके अपना बिगाड़ कर लेता हूँ जैसे कमजोर आदमी ठण्डी हवा से उसे बुरा जान कर नहीं वरन् अपनी स्वास्थ्य की कमी के कारण ही बचता है। () जीव की तीसरी अज्ञानता पर में इष्ट अनिष्ट कल्पना कर राग देष करना है। यह जीव स्व को भुला कर निरन्तर पर में ही लगा हुआ है। उन पर पदार्थों में जो इसके अनुकूल रहता है उसमें ये इष्ट की कल्पना कर राग कर लेता है और जो प्रतिकूल रहता है उसमें अनिष्ट की कल्पना कर देष कर लेता है । इप्ट अनिष्टपना पदार्थ का कोई गुण धर्म तो है नहीं, मात्र इसके द्वारा की गई कल्पना ही है। यदि इष्ट अनिष्टपना वस्तु का गुण धर्म होता तो कोई एक वस्तु सबको इष्ट ही लगनी चाहिए पी और कोई एक सबको अनिष्ट ही लगनी चाहिए थी। पर सबको इष्ट या अनिष्ट लगने की बात तो जाने दो, एक ही वस्तु एक व्यक्ति को कभी इष्ट लगती है और कभी अनिष्ट । भूख लगी होने पर जो भोजन इतना सुस्वादु और रुचिकर लगता है उसे ही भूख शमन होने पर देखने की भी इच्छा नहीं होती अतः इष्ट अनिष्टपना जीव में से उठने वाली झूठी कल्पनाएँ ही हैं। सर्वत्र हमारे सुख दुःख का या कपाय का कारण वस्तु या स्थिति नहीं वरन् उसमें हमारे द्वारा उठाया गया विकल्प या कल्पना ही है। हम चाहें तोइष्ट का विकल्प उठाकर स्वयं को सुखी मान लें, चाहें तो अनिष्ट का विकल्प उठा कर स्वयं को दुःखी मान लें पर वास्तविक आनन्द तो निर्विकल्प रह जाने में ही है जब चाहे कैसी भी स्थिति हो उसमें हम कोई भी विकल्प न उठाएं और ऐसा हम कर सकते हैं। प्रति समय हमारे मन में कुछ न कुछ चलता रहता है। मन के विकल्पों को भी जानने वाला जो साक्षी आत्मा भीतर है उसकी तो हमें पहचान नहीं और मन को ही हमने अपना होना समझ लिया है। हम पल-पल उलझे हैं या तो भूतकाल में घटी घटनाओं की स्मृति में या भविष्य की कुछ योजनाओं, इच्छाओं व चिन्ताओं मे या फिर अन्य अनेक उल-जलूल बातों के विचार में। ये विचार वा विकल्प किसी भी रूप में तो सार्थक नहीं, वर्तमान में तो ये अशान्ति देकर जाते हैं और भविष्य के लिएPage Navigation
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