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तृतीय अध्याय जैन दर्शन में समत्व प्राप्त करने का साधन-रत्नत्रय
(ज्ञान, दर्शन, चारित्र) ११६ (१) विभिन्न परम्पराओं में रत्नत्रय ११६ (२) सम्यक् दर्शन का अर्थ तथा महत्त्व १२२
वैदिक परम्परा में सम्यक् दर्शन १२९ बौद्धदर्शन में सम्यक् दर्शन१३० सम्यक् दर्शन के आठ आचार १३२ सम्यग्दर्शन गुण की प्राप्ति के योग से आत्मा में प्रकट होनेवाले उसके पांच लक्षण : १३७ i. प्रशम ii. संवेग iii. निर्वेद iv. अनुकम्पा
v. आस्तिक्य (७) सम्यक् ज्ञान का अर्थ तथा महत्त्व १५० (८) बौद्ध दर्शन में सम्यक् चारित्र१५५ (९) वैदिक परम्परा में सम्यक् चारित्र (शील या सदाचार)
चतुर्थ अध्याय समत्वयोग प्राप्त करने की क्रिया-सामायिक १६४-२१६ (१) सामायिक का अर्थ तथा स्वरूप (२) आवश्यक कर्त्तव्य का प्राथमिक अंग-सामायिक
सामायिक के भेद सामायिक शिक्षाव्रत है। .
सामायिक का समय (६) सामायिक का महत्त्व
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