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षष्ठ अध्याय में समत्व-प्राप्ति की प्रक्रिया-योग, तप, ध्यान तथा इनसे किस प्रकार से आध्यात्मिक विकास होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है, इस विषय का विस्तृत विवरण है । मानवजीवन का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करना है । चित्तवृत्तियों के निरोध के मार्ग पर बढ़ते हुए योग, तप और ध्यान साधना के द्वारा समाधि की उच्च-उच्चतर अवस्थाओं को पार करते हुए, अन्त में अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाना ही साधना का परम लक्ष्य है। पूर्ण समत्व की यह अवस्था जैन-धर्म में वीतराग-दशा, भगवद्गीता में स्थितप्रज्ञता तथा बौद्ध दर्शन में आर्हतावस्था (अर्हदवस्था) के नाम से जानी जाती
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