Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 8
________________ प्रकाशकीय पूज्य आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराजनी प्रेरणाथी साहित्यिक अने संस्कारपोषक प्रवृत्तिओना उद्देश्योने लईने स्थपायेला 'श्रीहेमचन्द्राचार्यनिधि'ने, तेनी प्रत्येक सत्प्रवृत्तिमां, नामांकित विद्वज्जनोनो पूरो सहयोग हमेशां सांपडतो रह्यो छे, ते तेनुं सद्भाग्य छे. आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी तथा सुविख्यात भाषाविद डॉ. हरिवल्लभ भायाणी-आ बन्ने महानुभावोना संयुक्त परिश्रम वडे तैयार थयेल प्रस्तुत प्रकाशन पण आवा सहयोगनुं ज सुफळ छे. बे अप्रगट पण अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवी मध्यकालीन रासकृतिओनुं आ संपादन अने ते विशे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनी संशोधनात्मक, परिचयात्मक तथा मार्गदर्शक नोंधो धरावतुं प्रस्तुत प्रकाशन, विद्वानो तथा जिज्ञासुओना करकमलमां मूकतां अमो घणा हर्षनी लागणी अनुभवीए छोए. आ प्रकाशन, कृतिओ वगेरे विशे कांई पण कहेवू ते अमारा अधिकार बहार- गणाय. अमे तो आ प्रकाशननो अमने लाभ मळ्यो ते बदल अमारा ट्रस्टने गौरवान्वित अनुभवीए छीए, अने आवां शोधपूर्ण प्रकाशनोनो लाभ डॉ. भायाणी जेवा विद्वानो तरफथी अमोने मळ्या ज करे तेवी प्रार्थना करतां विरमीए छीए. ___ श्री हरजीभाई पटेले सरस मुद्रण करी आप्युं ते बदल तेओनो आभार मानीए छीए. ता. १६-४-९८ ट्रस्टी गण : क. स. श्रीहेमचन्द्राचार्यनिधि, अमदावाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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