Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 370
________________ २९६ ] विणयाइएहिं तं विद्धतावसं किमवि पज्जुवासंतो । अणुजाणाविय कइय वि दिणाणि तत्थेव संवसिओ ॥८९॥ अन्नम्म दिने सो विन्नवेइ तं तावसं विणयपुव्वं । भयवं ! निवसइ इह कावि कन्नया तावसवर्णामि ॥ ९० ॥ सा कइया वि हु दीसइ खणेण विज्जु व्व होइ अहिस्सा । ता कहसु तीए वइयरमिय पुट्ठो चिंतइ मुणी वि ॥९१॥ नू मिमी रोइ एस कुमारो मणम्मि ससिणेहं । तेणऽप्पाणं पयsह कहेमि तो तत्तमेयस्स ॥९२॥ भणियं च तावसेणं इमीए कन्नाए वइयरं सोउं । इ अस्थि कोउयं तुह ता अवहियमाणसो सुणसु ॥९३॥ अस्थि धण-धन्न- मणि- रयणपुन्नपुन्नावणा वणियसुहया । नट्ठावया वि सइ मत्तियावया नाम नयरि ति ॥ ९४ ॥ तत्थ य राया निसिउग्गखग्गदारियविपक्खसंघाओ । नामेण नयगुणन्नियमणुस्ससेणो वि हरिसेणो ॥ ९५॥ पेच्छ्यजणाण रूवाइएहिं सययं पियाणि जणयंती । निम्मलगुणेहिं नामेण तस्स पियदंसणा भज्जा ॥ ९६ ॥ विसयसुहमणुहवंतस्स तस्स सह तीए हिययदइयाए । निज्जियविपक्खवग्गस्स जंति दिवसाणि नरवणो ॥ ९७ ॥ नवरं दुक्खमसज्झं समत्थि तस्सेगमेव सुहनिहिणो । जं दुव्वहरज्जधुराधरणखमो नत्थि से पुत्तो ॥ ९८ ॥ तत्तो तं सुयचिंतादुहदुहियं पासिऊण नरनाहं । पियदंसणाए भणियं सामि ! तुमं किं समुव्विग्गो ? ॥९९॥ कहियं दुक्खनिमित्तं थेवमिमं तीए सामि ! संलत्तं । आराहसु कुलदेविं पुन्नंतु मणोरहा तुज्झ ॥१००॥ सोउं पिया वयणं सुइभूओ सुद्धबंभयारी य । करकलियनिसियखग्गो धवलाहरणो धवलवसणो ॥ १०१ ॥ सुयलाभनिच्छ्यमई पुरओ कुलदेवया पुईसो । संथरियदब्भसयणो थक्को कुलदेवएक्कमणो ॥ १०२ ॥ जा जंति तिन्नि दिवसा वज्जियपाणा - सणस्स नरवइणो । तो सियवस्था - ऽऽभरणा पुरओ कुलदेवया पत्ता ॥ १०३ ॥ किं वच्छ ! ववसियं ते साहसमेयारिसं विसमकज्जं ? | जंपइ राया तं चेव मुणसि मणवंछियं मज्झ ॥ १०४॥ १. मत्तियावई- दशार्णदेशकी राजधानी पा०स०म० । [ ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof

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