Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 389
________________ [३१५ परिशिष्टम् [२] ऋषिदत्ताख्यानकम् ॥] अहवा विहिराए माणुसस्स तं नत्थि जं न संभवइ । अणुकूले कल्लाणं जह जायमिमीए किं बहुणा ? ॥४०८॥ एवं वियपुरिसेहिं विसइ वन्निज्जमाणगुणनिवहो । पियपरपरिवायत्ता विसेसओ तरुणरमणीहिं ॥४०९॥ सहइ सुहाहारहिं पियाहिं वि वहुप्पिओ गइंदगओ । रंभा-तिलोत्तमाहिं हरि व्व कुमरो भणइ कावि ॥४१०॥ मयरद्धओ व्व कुमरो ड्-पीईहिं व पियाहिं परियरिओ। भणियमवराइ [इह हिरि-] सिरिदइओ समयणाहि इमो ॥४११॥ अहवा वि भरहखेत्तस्स मज्झदेसो व्व धम्मकम्मनिही । सरसाहिं गंग-सिंधूहिं सहइ कुमरो सह पियाहिं ॥४१२॥ अवराए भणियमेसो हु भागसाराहिं भारियाहि समं । उत्तर-देवकुरूहि व ससुवन्नो सहइ मेरु व्व ॥४१३॥ सीया-सीओयाहि व विदेहभागो व्व रेहइ सुवासो । सुपओहराहिं सह पिययमाहिमेसोऽवरा भणइ ॥४१४॥ अन्ना भणइ सुदिट्ठीहिं संगओ सहइ पिययमाहिमिमो । दंसण-नाणसिरीहिं व चरित्तराओ व्व सिवजणओ ॥४१५॥ इय नायरनर-नारीनिवहेणं नंदणो नरिंदस्स । वन्निज्जंतो पविसइ पए पए कोउयक्खित्तो ॥४१६॥ पत्तो य रायभवणं रुइरुल्लोयं ललामललणोहं । विरइयवंदणमालं पूरियमुत्ताहलचउक्कं ॥४१७॥ विहियं वद्धावणयं रण्णा कुमरागमम्मि हरिसेणं । हरिसपणच्चिरवरवारविलयतुटुंतहारलयं ॥४१८॥ वज्जंततूरनिवहं गायणगिज्जंतरायगुणनिवहं । विद्धाजणनिव्वत्तियकुमरोयारणयरमणीयं ॥४१९॥ चलणेसु पाडियाओ सासुय-ससुराइयाण वहुयाओ । रिसिदत्ताए कहिओ सव्वो कुमरेण वुत्तंतो ॥४२०॥ ससुराइएहिं तत्तो खमाविया आयरेण रिसिदत्ता । खमसु महासइ ! जं तुज्झ विहियमसमंजसं किंपि ॥४२१॥ पव्वाइयाए चरियं नाऊणं विम्हिया नयरलोया । पेच्छ जहा धुत्तीए अम्हे वि हु वंचिया तीए ॥४२२॥ अणुरायपरवसाहिं दोहिं वि [भज्जाहिं] सह कुमारस्स । विसयसुहमणुहवंतस्स कोइ कालो वइक्कंतो ॥४२३॥ अह अन्नया य चउनाणसंजुओ सगुणसमणपरियरिओ। सिरिभद्दजसो सूरी विहरतो तत्थ संपत्तो ॥४२४॥ D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof

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