Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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३२०]
[ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ तत्थ वि वाहण-दोहण-दहणंकण-छह-पिवास-सहणाई। भारारोवण-सीया-ऽऽयवाण सहणं सहति दुहं ॥४९१॥ तत्तो वि खवियकम्मा पयईए पयणुमाण-मय-कोहा । अज्जवगुणभावियमाणसा य मणुया पयायंति ॥४९२॥ तत्थ वि दारिद्दहया दोहग्गकलंकदूसियसरीरा । कुकलत्तपराभूया अपत्तपुत्ताइसंताणा ॥४९३॥ मुक्खत्तसिरोमणिणो कुवन्न-कुस्सर-कुरूवयाभिहया । आजम्मं बहुविहकास-सास-रोगाभिहयतणुणो ॥४९४॥ तम्हा तेसु वि सोक्खं न कि पि परमत्थओ महाराय !। नवरमिमो मणुयभवो धम्मगुणाराहणाओ सुहो ॥४९५॥ जम्हा मणुयभवे च्चिय पडिवन्नो संजमो तवो होइ । दव्वत्थओ य परमो विसिट्ठसग्गोऽपवग्गो य ॥४९६॥ परमेयम्मि वि बहवो निम्वित्ताणा सिणेहपडिबद्धा । बहुविहपावपरिग्गहमुच्छियहियया कुबुद्धीया ॥४९७॥ जोव्वणमयउम्मत्ता परलोयपरम्मुहा पमायपरा । विसयासत्ता अजरामर व्व चिटुंति मूढऽप्पा ॥४९८॥ देवेसु वि नत्थि सुहं चिंतिज्जंतं सतत्तबुद्धीए । ईसाविसायपरपरवसित्तदुहदूमियमणेसु ॥४९९॥ ते वि हु कोहाभिहया माणमहासेलचंपियावयवा । मायासल्लियहियया लोहमहाजलहिणिब्बुड्डा ॥५००॥ विज्जंति कसाया जत्थ निव्वुई तत्थ राय ! मा मुणसु । पज्जलइ जत्थ जलणो जाण कओ तत्थ सुत्थत्तं ? ॥५०१॥ किं बहुणा भणिएणं? पभवंति कसायसत्तुणो जत्थ । गयणे अरविंदं पिव मा जोयसु तत्थ सुहसत्तं ॥५०२॥ इय चउगइभवरूवे संसारे दुक्खिओ भमइ जीवो । संपयं सासयसोक्खे मोक्खे जह वसइ तह सुणसु ॥५०३॥ मोक्खो असेसकम्मस्स संखए सो य संवहेऊण । मिच्छत्ता-ऽविर-कसाय-दुटुजोगाण सव्वेसि ॥५०४॥ होइ विपक्खासेवणदारेण नरिंद ! सो उण विवक्खो। सम्मत्त-णाण-दसण-चरणाणि विसुद्धरूवाणि ॥५०५॥ जह वत्थाईण मलो सुज्झइ सुहवारिसंपओगेण । तह सम्माइपओगा कम्ममलोऽवेइ जीवाणं ॥५०६॥
१. जीवस्स रं० ।
D:\chandan/new/datta-p/pm52nd proof

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