Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 388
________________ ३१४] [ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ रुप्पिणि-रिसिदत्ताणं दीसइ पच्चक्खमंतरं गरुयं । सुणया-सीहीण व काइ-रायहंसीण वयणेण ॥३९१॥ अन्नं च जणो जंपइ ठाणे कुमरस्स एत्थ पडिबंधो । एईए रूवेणं मोहिज्जइ को न भुवणम्मि ? ॥३९२॥ तो रन्ना सा ग्रहविया सव्वालंकारभूसियसरीरा । देवंगनिवसणधरा विहिया कप्पदुमलय व्व ॥३९३॥ संजायगरुयहरिसो तीए सह भुंजिउं समारद्धो । पंचप्पयारभोए अवगन्निय रुप्पिणिं रमणि ॥३९४॥ तं दटुं रिसिदत्ता चिंतइ एसो इमीए निन्नेहो । दिट्ठविलीओ एवं अवन्नवाओ धुवं मज्झ ॥३९५॥ एसा जइ वि वराई कयावराहा परोवरोहेण । तह वि हु मए इमीए उवयरियव्वं किमन्नेण? ॥३९६॥ उवयरिए उवयारो जो सो वणियाण होइ ववहारो । अवरत्थ जमुवयरियं तं पुण गरुया पसंसंति ॥३९७॥ तो कइया वि सहरिसं निययवरं पत्थिओ पयत्तेण । रिसिदत्तपणइणीए तेणुत्तं भणसु जं देमि ॥३९८॥ जइ एवं ता एसा दट्ठव्वा मज्झ सरिसया सामि !। एवं तुज्झ वि मज्झ वि मज्झत्थगुणेण माहप्पं ॥३९९॥ जइ एयाए कहमवि तीए पावाए पेरियाए कयं । तह वि हु मह खमियव्वं विसिटकुलसंभवो तं सि ॥४००॥ इत्थी निद्दयहियया ईसाविसमोहिया सकज्जपरा । फुसिओ एस कलंको एवं तीए कुणंतीए ॥४०१॥ अह अन्नया य भणिओ कणगरहो मंतिपमुहलोएण। मोयाविज्जउ राया गम्मउ संपइ नियपुरीए ॥४०२॥ कुमरेण वि सप्पणयं तहेव विहियम्मि नरवरिंदेण । संवाहिया सहरिसं विभवं दाऊण नियधूया ॥४०३॥ तत्तो सुंदरदिवसे अणवरयपयाणएहिं संपत्तो । पविसइ निययपुरीए पेच्छिज्जंतो पुरजणेण ॥४०४॥ सव्वेयरपासट्ठियरिसिदत्ता-रुप्पिणीहिं परियरिओ। सव्वमयसमयबंधुरसिंधुरखंधे समभिरूढो ॥४०५॥ भणियं केणावि हु मेत्त ! पेच्छ एयं महंतमच्छरियं । एसा किर रिसिदत्ता विणासिया पाणपुरिसेहिं ॥४०६॥ जाव य सक्खं अक्खंडसुंदरावयवरेहिरसरीरा । दीसइ दाहिणपासम्मि संठिया सुहयकुमरस्स ॥४०७॥ D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof

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