Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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परिशिष्टम् [ २ ] ऋषिदत्ताख्यानकम् ॥ ]
तीयुत्तं जमविहियं सुरा वि सत्ता न चेव तं दाउं । जं पुण विहियं तं वच्छ ! होइ एमेव पुरिसाण ॥ १०५ ॥ राया वि वज्जरइ चक्करस्स न हु देवि ! एस पत्थावो । सज्जो पडिच्छसु सिरं वियरसु वा मज्झ वरपुत्तं ॥ १०६ ॥ इय भणिऊणं दाहिणकरेणमाकरिसिऊण करवालं । वामेण केसपासं धरिडं वाहरइ सामरिसं ॥ १०७ ॥ जइ मह चिरंतणाणं सुमरसि कुलदेवि ! कमवि भत्तिगुणं । ता देसु सुयं इय जंपिऊण कंठे कओ खग्गो ॥१०८॥ मा साहसं ति भणिरीए थंभिओ भूवइस्स भुयदंडो । पयडीहोउं भणियं होही तुह वच्छ ! अंगरुहो ॥१०९॥ तो उट्ठओ नरिंदो महापसाओ त्ति भणिय नियभवणं । पत्तो पभायसमए पेच्छइ पियदंसणा सुमिणं ॥ ११०॥ किर मह सीहकिसोरो उच्छंगगओ सुहं थणं पियइ । इय पेच्छिय पडिबुद्धा सुमिणं साहइ नरिंदस्स ॥ १११॥ तेणावि हु भज्जाए कहिओ सव्वो वि रयणिवुत्तंतो । सा वि हु तुट्ठा जंपइ दिन्नो देवीए मह पुत्तो ॥ ११२॥ ततो सुहंसुहेणं गब्धं परिवहइ जायसंतोसा । अद्धट्टमदिवसाणं नवन्ह मासाणमुवरिं सा ॥११३॥ पसवइ पहाणपुत्तं सोहणतिहि-गह- मुहुत्त - रिक्खेसु । वद्धावणयं काउं दिन्नं नामं अजियसेणो ॥ ११४॥ अन्नम्म दिने राया जिओ व्व कम्मेण गुविलभवगहणे । एम्म वणे खित्तो अणप्पवसएण तुरएण ॥११५॥ दिट्ठो य विस्सभूई नामेणं तावसो परमजोगी । राया वि तस्स पासे धम्मं सोऊण पडिबुद्धो ॥ ११६ ॥ एत्थंतरम्मि पत्तं तयाणुसारेण राइणो सेन्नं ।
तो तेण देवउलिया कारविया गुरुकए एसा ॥११७॥ तत्तो य विस्सभूई विन्नत्तो राइणा वलंतेण । भयवं ! खमसु विरूवं तवोवणे जं मए विहियं ॥११८॥ दिन्नो य तेण रन्नो गारुडमंतो अचिंतमाहप्पो । पत्तो य मत्तियावइनियनयरिं नरवरिंदो वि ॥ ११९ ॥ अह अन्नया य पेच्छ करभीजुयलं दुवारदेसम्मि । तत्तो उत्तरिऊणं दोन्नि नरा विन्नविंति इमं ॥ १२० ॥ देव म्हे तुह पासे रन्ना पियदंसणेण पट्टविया । दट्ठा कहवि पमाया मह कन्ना उग्गभुयगेण ॥१२१॥
D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof
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