Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 375
________________ परिशिष्टम् [ २ ] ऋषिदत्ताख्यानकम् ॥ ] जओ- जं मणरुइए छेया दिट्ठि दूइ भांति मिहुणाणं । जं हिययस्स न रुच्चइ तत्थ गया कुणउ किं दिट्ठी ? ॥१७३॥ गुरुणो पेच्छं तस्स वि तेसिं पढमे वि संगमे दूरं । पेच्छसु केरिसमेयस्स विलसियं मयणहयगस्स ॥१७४॥ तह कहवि नेहवसओ परोप्परं ताण निवडिया दिट्ठी । निव्वत्तरइसुहाणीव तीए जायाणि ताणि जहा ॥१७५॥ भणियं च - दिट्ठीए च्चिय सा तेण पिययमा नेहनिब्भररसाए । आभासिय व्व आलिंगिय व्व रमिय व्व पीय व्व ॥ १७६ ॥ जओ- दरहसिय सरसकडक्खियं च वन्नंति पेमसव्वस्सं । मिहुणाणमेगसयणेऽवत्थाणं लोगववहारो ॥ १७७॥ तत्तो य तावसेणं पाणिग्गहणं कराविओ तीए । तत्थेव कड़वयदिणे वसिओ तावससमाहिक ॥१७८॥ रिसिदत्ताए लाभे संजाए चिंतियं कुमारेण । अवराए भज्जाए न संपयं किंपि मह कज्जं ॥१७९॥ तो नयनयराभिमुहं वच्चंतेणं विणीयविणणं । भणिओ तावसससुरो मुयसु ममं ताय ! नियनयरे ॥१८०॥ देसु मह किंपि सिक्खं पओयणं रुप्पिणीए मह सिद्धं । संपइ कलत्तविस तुह धूयाए कयत्थोऽहं ॥ १८१॥ तत्तो भणियं रिसिणा लच्छीए मा छलिज्जसु कुमार ! । बहवो इमीए छलिया अथिरसहावाए पावाए ॥१८२॥ मा मज्जसु विज्जाए जम्हा विज्जा मयस्स पडिवक्खो । विनडिज्जंति अणेगे एईए वि वच्छ ! तुच्छमई ॥१८३॥ एयं पुण तारुन्नं विवेयवियलाणमंधया भणिया । रूवं पि हु उम्माओ रज्जसिरी वि हु कुगइहेऊ ॥ १८४ ॥ किं बहुणा वायावित्थरेण सगुणेसु वहसु मा गव्वं । मइलिज्जंति मएणं गरुयाण वि जेण वच्छ ! गुणा ॥ १८५ ॥ तह एवं रिसिदत्तं मज्झ पसाया अदिट्ठदुहलेसं । मा मुंचसु नियछायं व वच्छ ! विहियावराहं पि ॥१८६॥ एवं गमणावसरे धूया वि हु तावसेण सिक्खविया । पइणो सरीरकिच्चं सयमणुचिट्ठसु सया वच्छे ! ॥१८७॥ माइया विहु मज्जसु पियपणएणं वियारिया वच्छे ! । पइपणएणं भुल्ला महिलाओ धुवं विणिस्संति ॥१८८॥ तहा- वच्छे ! विणओ च्चिय होइ भूसणं इह नरस्स वि जयम्मि । पुण विसेसा निच्चपराहीणजम्माणं ॥ १८९॥ नारीण D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof [ ३०१

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