Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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३०२]
[ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ एत्तो च्चिय कायव्वो निच्चं चिय उवसमो इमाहिं जओ। अन्नो वि अणुवसंतो न नंदए किं पुणित्थीओ ? ॥१९०॥ अविसिट्ठसंगमेणं सुपुरिसमग्गं चयंति धीरा वि । अबलाण वराईणं ताण विणासम्मि किं चोज्जं? ॥१९॥ अणुयत्तिविरहियाणं विहडंति सुयाइणो पहूणं पि । ससुरकुलायत्ताणं निच्चं पि हु किं पुणित्थीणं? ॥१९२॥ दिताण दाणमेव हि संकइ न य परिभवं कुणइ कोइ। दाणेण विरहियाणं न टलइ लोओ करीणं पि ॥१९३॥ लोयट्ठिइमेत्तं चिय विभूसणं कणय-रयणमाईहिं। सीलालंकारो च्चिय पसाहणं कुलपसूयाणं ॥१९४॥ इय पुत्ति ! विणय-उवसम-सुसंग-अणुवित्ति-दाण-सत्तीसु । निच्चं पि समुज्जुत्ता रक्खेज्जसु सीलसंपत्तिं ॥१९५॥ सा एवं सिक्खविया पणमिय पिउणो पिएण सह चलिया ।
कुमरे दढमणुरत्ता सिढिलियनेहा य जणयम्मि ॥१९६॥ भणियं च- बालत्तणम्मि पिइ-माइ-भइणि-सहियायणो पिओ होइ।
आरूढजोव्वणाणं जुवईण पिओ पिओ एक्को ॥१९७॥ अह पणमिऊण जणयं तवोवणाओ विणिग्गया बाला ।
मणयं पडिबंधाओ वलियग्गीवं पलोयंती ॥१९८॥ जओ भणियं- अच्छंतु निरंतरनेहगब्भसब्भावसुंदरा सुयणा ।
सहवासवड्डिया तरुवरा वि दुक्खेहिं मुच्चंति ॥१९९॥ तत्तो तवोवणं तीए विरहियं किमवि जणइ रणरणियं । सहस च्चिय परिचत्तं असेसजणमाणणिज्जाए ॥२००॥ भवणं व भवणलच्छीए साहुचित्तं व पसमवित्तीए । विज्जाए विउसमणं व निवसिरीए व निवभवणं ॥२०१॥ अणवरयपयाणेहिं पत्ताई पमोयनिब्भरमणाई। रन्ना पवेसियाई महाविभूईए नयरम्मि ॥२०२॥ पिउणा परितुद्वेणं, समप्पिओ ताण पवरपासाओ । परिवारो य विणीओ दासी-दासइओ सव्वो ॥२०३॥ तत्तो पइभत्ताए भुंजइ भोए गुणाणुरत्ताए । समयं रिसिदत्ताए कणगरहो सुद्धचित्ताए ॥२०४॥ कीलइ गीयकलाए कइया वि हु चित्तकम्मकीलाए । कइया वि हु पण्हुत्तर-पहेलियाणं विणोएण ॥२०५॥ लोयणनिमेसमेत्तं विरहं सोढुं अपारयंतेहिं । दोहिं पि तेहिमइवाहियाई वरिसाणि पंच तहिं ॥२०६॥
D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof

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