Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 381
________________ परिशिष्टम् [ २ ] ऋषिदत्ताख्यानकम् ॥ ] इय पलवंती असमंजसाइं संधीरिऊणमप्पाणं । रे जीव ! किं न बुज्झसि ? किं मुज्झसि ? कत्थ सो ताओ ? ॥२७४॥ कत्थ तुमं ? किं मूढा ? जमेस एवंविहो विहिनिओगो । ता नियकयस्स मोक्खो संपइ सम्मं सहंतस्स ॥ २७५ ॥ जइ पविससि पायालं लुक्कसि गिरिकंदरेसु विसमेसु । तह वि हु पुव्वकयाओ न मुच्चसे जीव ! किं बहुणा ? ॥२७६॥ एवं विवेयवसओ वल्लहभावाओ जम्मभूमीए । मणयं पत्तसमाही सा वसइ तवोवणे तम्मि ॥ २७७॥ अह अन्नयाय ती विचिंतियं पढमजोव्वणत्था हं । ता सीलरयणमेयं रक्खेयव्वं कहं नु मए ? ॥ २७८ ॥ जम्हा महिला महुरत्तणेण पयईए पत्थणिज्जगुणा । चिंचापक्कफलं पिव वड्डियवंछा जयस्सावि ॥ २७९ ॥ सीलं च मएऽवस्सं रक्खेयव्वं सपाणचाए वि । एयम्मि विट्टम्म नो इहलोओ न परलोओ ॥ २८०॥ सीलं महानिहाणं सुकुलुप्पन्नाण भावभंडारो । वसणसयसल्लियाणं सरणमिमं जेण भणियं च ॥ २८९ ॥ सीलं सासयवित्तं परमपवित्तं अकित्तिमं मित्तं । उत्तमकित्तिनिमित्तं मुत्तिसुहपसाहणपसत्थं ॥ २८२ ॥ अधाण धणं सीलं भूसणरहियाण भूसणं परमं । परदेसे नियगेहं सयणविमुक्काण नियसयणो ॥ २८३ ॥ ता केण पओगेणं आजम्ममगंजियं इमं होही । ता सुमरियमुवइटुं जणएणं मूलियावत्थं ॥ २८४ ॥ जएण मज्झ कहियं कइया वि हु कोउयं जड़ हवेज्जा । ता एयाए तरुमूलियाए माहप्पमेयं ति ॥ २८५॥ जइ महिला वामे ऊरुयम्मि पक्खिवइ फालिऊणमिमं । तो पुरिसो जायइ नीणियाए जायइ पुणो महिला ॥ २८६ ॥ एयं चिय विवरीयं नारीभवणम्मि जाण पुरिसस्स । नवरं दाहिणऊरुम्मि तं वियड्डा ववइति ॥ २८७ ॥ तह चेव तीए विहिए जाओ सहस त्ति सोहणो पुरिसो । पयईए दुद्धरिसो मणुन्नलायन्नरूवधरो ॥२८८॥ चक्कंकुस-कलसंकियकर - चरणतलो वियड्डिमानिलओ । मणि- मंत-ओसहीणं अचिंतमाहप्पजोगाओ ॥ २८९ ॥ तो जणयवयं घेत्तुं तावसवयवेसधारओ कुमरो । चिट्ठइ वक्कलवसणो तवोवणे कंदफलभोई ॥ २९०॥ [ ३०७ D:\chandan/new/datta-p/pm 5 \ 2nd proof

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