Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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३०४]
[ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ बीयम्मि दिणे तह चेव रायपुरिसं विणासिउं पावा । मुंचइ रिसिदत्ताए सयणे नरमंसखंडाइं ॥२२४॥ कुमरो वि तयं दटुं चिंतइ नणु रक्खसी पिया मज्झ । सा वि हु पुट्ठा सुद्धस्सहावओ भणइ तं चेव ॥२२५॥ कुमरो वि ताणि धरणीए गोवए हड्ड-मंसखंडाई । तइए वि दिणे तह चेव मारिउं कणइ तं चेव ॥२२६॥ नवरं कुमारछुरियं रुहिरेण विलिंपिउं वयइ गेहे। विज्जाए न सा नज्जइ निग्गच्छंती न पविसंती ॥२२७॥ कुमरो वि तयं छुरियं रिसिदत्ताए पयासिउं भणइ । अज्ज पिए ! किं जंपसि ? सा जंपइ पुच्छ मह कम्मं ॥२२८॥ पुणरवि य मोहमोहियमणेण सां दढयरं रहे पुट्ठा । कहसु पिए ! सब्भावं तुज्झ हियत्थं भणेमि अहं ॥२२९॥ जह तुह माणुसमंसे कुओ वि कम्मोदयाओ रसगिद्धी । ता हं पच्छन्नं पि हु एयं संपाडइस्सामि ॥२३०॥ एवं भणिया लज्जाए किं पि ओणयमुही परुन्ना सा । किं तुह पिययम ! पच्छन्नमेरिसं किं कयावि कयं ? ॥२३१॥ तुमए चिय सच्चवियं तवोवणे मज्झ भत्त-पाणाई। जइ पुण पच्छन्नं को वि कुणइ पहु ! तं न याणेमि ॥२३२॥ कुमरो वि तीए दुस्सहविओगजणयं दुहं असहमाणो । सव्वं गोवइ पुट्ठो य भणइ नाहं वियाणामि ॥२३३॥ ताहे रुट्ठो राया पुच्छइ नियमंतिणो नयरमज्झे । वइससमेयं न मुणह तुम्हाणं केरिसा बुद्धी ? ॥२३४॥ तेहिं वि सविणयमुत्तं तह कह वि हु संपयं जइस्सामो । जह कज्जमिणं जायइ विन्नायं देवपायाण ॥२३५॥ इय भणिऊण पवीणा पव्वाया होइ एरिसे कज्जे । सायरमओ तयं चिय गंतुं पुच्छंति पव्वाइं ॥२३६॥ तीए भणिए सव्वं सुत्थमहं संपयं करिस्सामि । रयणीए देवयं पुच्छिऊण तत्तं कहिस्सामि ॥२३७॥ रयणीए रुहिरेणं रिसिदत्ताए मुहं विलिंपेउं । अवसोयणिं च दाउं रन्नो पासं गया पावा ॥२३८॥ अभयं मग्गिय जंपइ रिसिदत्ताचेट्ठियं इयं राय !। जा जोयावइ राया ता पेच्छइ तं तह च्चेव ॥२३९॥ तो जायपच्चएणं रन्ना निस्सारिऊण सा बाला । पाणाणमप्पिया मारणत्थमकयावराहा वि ॥२४०॥
D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof

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