Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
View full book text
________________
[२९९
परिशिष्टम् [२] ऋषिदत्ताख्यानकम् ॥]
दिवो य विस्सभूई भणिओ संविग्गमाणसेण इमो। देसु मह तावसवयं भयवं ! संसारभीओ हं ॥१३९॥ तेणावि हु सो राया विहिणा पव्वाविओ कुणइ किरियं । सव्वं पि तावसाणं तवोवणे एत्थ भवभीरू ॥१४०॥ अह देवीए अनाओ गब्भो आगमणसमयसंभूओ। परिवड्डिउं पवत्तो सा पुट्ठा किं इमं भद्दे ! ? ॥१४१॥ तीए वि हु संलत्तं वयं पवन्नाए सामि ! न हु एसो । ता किं कीरउ इण्हि ? कम्मगई का वि मह एसा ॥१४२॥ तेणावि तावसेणं विचिंतियं मज्झ ताव संजायं ।
गरुयं कलंकमेयं धिरत्थु ! मह जीवियव्वस्स ॥१४३॥ जओ- अलियं पि हु वयणिज्जं गरुयाणं दूमए हिययमहियं ।
ता किं करेमि संपइ ? जामि न नज्जामि जत्थ अहं ॥१४४॥ मुणिधिक्कारहएणं पओयणं किं ठिएण एत्थ मए ?। चिंताउरस्स एवं समागया भीसणा रयणी ॥१४५॥ नाओ एस कओ वि हु कुलवइणा गब्भसंभवो तस्स । चइउं वणं सयं चिय अन्नत्थ गओ सपरिवारो ॥१४६॥ ताहे सो अहिययरं मणम्मि संतावमुव्वहइ गरुयं । पेच्छह पावेण मए मुणिणो निव्वासिया गुणिणो ॥१४७॥ ता किं करेमि संपइ ? कत्थ गओ निव्वुई लहिस्सामि ? ।
अहवा वि पावियव्वं अवस्स पावइ धुवं जीवो ॥१४८॥ जओ- दूर वच्चइ पुरिसो तत्थ गओ निव्वुई लहिस्सामि ।
तत्थ वि पुव्वकयाई पुव्वगयाइं पडिक्खंति ॥१४९॥ जं जेण पावियव्वं सुहं व दुक्खं व कम्मनिम्मवियं । तं सो तहेव पावइ कयस्स नासो जओ नत्थि ॥१५०॥ धीराण कायराण व अणत्थरिंछोलिया पडइ देहे । सा सहियव्वा न सहइ बला वि दइवो सहावेइ ॥१५१॥ ता किं वियप्पिएणं एत्थेव तवोवणम्मि निवसंतो । पालेमि सुद्धसीलं विहिणा नियपणइणि एयं ॥१५२॥ अह सव्वगुणविसुद्धे दिवसे वणदेवयं व दित्तीए । उज्जोयंती वणदसदिसाउ वरदारियं देवी ॥१५३॥ सा पियमई पसूया पसत्थलक्खणविराइयावयवं । अह तत्थ कम्मवसओ जं जायं तं निसामेह ॥१५४॥ अणुचियऽवत्थाणाओ अणुचियपावरण-भोयणाओ य । परिचारयविरहाओ पंचत्तं पियमई पत्ता ॥१५५॥
D:\chandan/new/datta-p/pm5\2nd proof

Page Navigation
1 ... 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436