Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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लिखी, जो आठ हजार श्लोक परिमाण है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह ग्रन्थ कितने अधिक अर्थ गौरव को लिये हुए है। इसी ग्रन्थ में, आचार्य महोदय ने एकान्तवादियों को स्वपर वैरी बताया है।” एकान्तग्रह रक्तेषुनाथ स्वपरवैरिषु ।।८।।
इन ग्रन्थों का हिन्दी अर्थ सहित प्रकाशन हो चुका है। उपरोक्त ग्रन्थों के अलावा आपके द्वारा रचित निम्न ग्रन्थों के उल्लेख मिलते हैं जो उपलब्ध नहीं हो पाये हैं -
१. जीवसिद्धि २. तत्वानुशासन ३. प्राकृत व्याकरण
४. प्रमाणपदार्थ ५. कर्मप्राभृत टीका और ६. गन्धहस्ति महाभाष्य ___महावीर स्वामी के पश्चात् सैकड़ो ही महात्मा आचार्य हमारे यहाँ हुये है, उनमें से किसी भी आचार्य एवं मुनिराजों के विषय में यह उल्लेख नहीं मिलता है कि वे भविष्य में इसी भारत वर्ष में तीर्थंकर होगें। स्वामी समन्तभद्र के सम्बन्ध में यह उल्लेख अनेक शास्त्रों में मिलता है। इससे इन के चारित्र का गौरव और भी बढ़ जाता है।
निहालचंद पाण्ड्या दि. : १ मई ९६
मंत्री पंडित सदासुख ग्रन्थमाला
अजमेर
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