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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
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जन लांबो दंड काढ्यो अर्थात् ५ द्वारा ते देवोए रत्न, वज्र, धैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुद्गल, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजनपुलक, अंजन, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक अने रिष्टनां मोटा-जाडां पुद्गलो दूर करी सूक्ष्म पुद्गलो लीधां. पछी फरी पण
२०भगवान वैक्रियसमुद्घात करी तेमणे पोतानां उत्तर वैक्रियरूपो बनान्यां. आ रीते तेओ-आभियोगिक देवो-पोतानां रूपोने बनावी घणीज
| अने अभित्वरावाळी, विशेष वेगवाळी अतिशय शीघ्रतावाळी, वधुमां वधु चपलतावाळी, प्रचंड दिव्य गतिथी तीरछी दिशामा जवा उपड्या.
योगिक असंख्य द्वीप अने समुद्रोनी बच्चोवच्च थता तेओ जंबूद्वीपना भारतवर्षमां आयी पहोंच्या. पछी त्यां आमलकप्पा नगरीनी यहार जे | देवोनो तरफ अंबसालवण चैत्यमां श्रमण भगवान महावीर बिराज्या हता ते तरफ जई ते आभियोगिक देवोप भगवान महावीरनी फरती | वार्तालाप प्रण प्रदक्षिणा करी, तेमने वांद्या, नमस्कार कर्यों अने पछी तेओ आ प्रमाणे बोल्याः ___ "हे भगवान ! अमे सूर्याभदेवना भाभियोगिक देवो छीए, आप देवानुप्रियने बांदीए छीप, नमीए छीप, सत्कारीप छोए, सन्मा- I n नीए छीए अने कल्याणरूप, मंगळरूप, देवरूप अने चैत्यरूप पवा आप देवानुप्रियनी पर्युपासना करीप छीए."
[२०] 'हे देवो' एम कद्दीने श्रमण भगवान महावीरे ते देवोने आ प्रमाणे काः
"हे देवो! ए पुरातन छे, हे देवो! ए कृत्यरूप छे, हे देवो! ए करणीयरूप छे, हे देवो! आचीर्ण छे, अने हे देवो! ए संमत मनापलुं छे के भवनपति, चानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिक देवो अरहंत भगवंतोने बदि छे, नमे छे अने तेम करी पोतपोतानां नामगोत्रो कही संभळावे छे. हे देवो! ए पुरातन पद्धति छे अने ते सम्मत थपली छे." गरम प्रदेशनो मानव ठंडा प्रदेशमां जाय त्यारे ते पोताना शरीर उपर गरम कपडा पहरे छे, ओढे छे, तेम देवसृष्टिमा रहेनारा लोको ज्यारे मानवसृष्टिमां आवे छे त्यारे तेमने पोतानां शरीरनी रचना बदलवी पडती हशे एम आगमवचन उपरथी लागे छे. आ विशे विशेष १५ तर्क जइ शकतो नथी, तेमज तेम करवाना अर्थात् शरोरपरिवर्तनना कारण संबंधे पण कशु कही शकातुं नथी.
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