Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
View full book text
________________
रायपसेण इय सुत्तनो
सार
पएसीने उपदेश आपवानी चित्तनी भलामण
॥११०॥
तो हे देवानुप्रियो ! आपणे जईए अने चित्तसारथिने तेने अतिप्रिय लागे तेवी केशी कुमारना आगमननी हकीकत जणावीए.
एवो विचार करी ते उद्यानपालको चित्तसारथिने घेर गया, तेने प्रणामपूर्वक जयविजयथी वधावी कहेवा लाग्या के, हे देवानुप्रिय ! तमे जेमनी वाट जोइ रह्या छो ते केशी कुमारश्रमण ओपणी सेयविया नगरीना मियवण उद्यानमा आवी संयम अने तपथी | आत्माने भावित करता रहेवा लाग्या छे. __ [१५८] उक्त हकीकत सांभळी चित्तसारथि बहु खुश थयो. पछी ते, आसनथी उठी-ऊभो थई पादपीठथी नीचे ऊतरी पगमांथी ५ | मोजडीओ काढी नांखी खमे खेस राखी हाथ जोडी जे दिशामा केशी कुमारश्रमण ऊतर्या हता ते दिशा तरफ सात आठ पगलां गयो |:अने प्रणामपूर्वक तेमनी स्तुति करवा लाग्योः
नमोऽत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं वगेरे [पृ० १८ पं० २]
आम शकस्तव पूरुं करतां छेवटे ते बोल्यो के-अहींना मियवण उद्यानां पधारेला ए मारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक केशी कुमारश्रमण भगवानने हुं वांदुं छु.
ए रीते पोताना धर्माचार्यने नमस्कार करी तेमनो आगमन संदेशो कहेवा आवनार ते उद्यानपालकोनो सारथिप सत्कार कर्यो अने जीवतांसुधी पहोंचे तेटलुं विशाळ प्रीतिदान आपी तेमने विदाय कर्या. __ पछी तेणे कौटुंबिक पुरुषोने बोलावीने अश्वरथ जलदी तैयार करी लाववानो आदेश को. रथ आवतां भावतां तो ते नाही, बलिकर्म करी, शुद्ध वस्त्रो पहेरी अने शरीरने शोभावी तैयार थई गयो.
पछी ते, रथमा बेसी मोटा जनसमुदाय साथे केशी कुमारथमणना दर्शनार्थे गयो।
[१५९] केशी श्रमणनी धर्मदेशना सांभळी हरखाएलो अने तोष पामेलो सारथि बोल्यो के-हे भगवन् ! अमारो राजा पएसी अधार्मिक छे अने पोताना देशनो य कारभार बराबर चलावतो नथी, तेम कोई श्रमण ब्राह्मण के भिक्षुओनो आदर करतो नथी
Jain Education remona
For Private Personel Use Only
waldjainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536