Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
[२१] पुत्रने नवमुं वरस बेसतां तेनां मातापिता, न्हवरावी वलिकर्म करावो सारी रीते शणगारी शुभ मुहूर्त्तमां मोटा उत्सव साथे कलाचार्य पासे कलाओ शीखया मोकलशे.
दृढप्रतिज्ञर्नु [२१२] कलाचार्य लिपि अने गणितथी मांडीने पक्षीओनी भाषा समजवा सुधीनी बहोंतेरे कळाओने प्रयोग साथे शीखवाडी | भणतर मातापिता पासे ते पुत्रनु उपनयन करशे..
गुरुदक्षिणा दृढप्रतिज्ञनो कलाओ संबंधी अभ्यास जोइ मातापिता कलाचार्य उपर खुश थशे अने विशिष्ट खानपान वस्त्र गंध माला अलंका-५
दृढपतिज्ञनी रोवडे कलाचार्यनो सत्कार करशे तथा जीवनपर्यंत चाले तेवू विपुल प्रीतिदान दइ तेमने विसर्जित करशे.
भोगसम[२१३-२१४] बहोतेर कलानिपुण, अढार"देशीभाषाविशारद, गीतनृत्यरसिक नाट्यकलाकोविद, पवो दृढप्रतिज्ञ यौवनमा आवतां
र्थता दृढ तेनां मातापिता तेने भोगसमर्थ जाणी एम कहेशे के, हे चिरंजीव ! तुं युवान थयो छे माटे हवे तुं कामभोगोनी आ विपुल सामग्रोने
प्रतिज्ञनि. भोगव. २१५] दृढप्रतिज्ञ पोतानां मातापिताने (विनयपूर्वक) जणावशे के, हे मातापिता ! भोगोनी ए सामग्रीमा मने जराय रस नथी, |१०|
अनासक्ति अर्थात् ते ए भोगसामग्रीथी ललचाशे नहि, खेंचाशे नहि, तेम तेमा लेश पण आसक्ति राखशे नहि. जेम कमळ पंकमां पेदा थाय छे अने पाणीथी वधे छे, छतां पंक के पाणीथी लेपातुं नथी, तेम कामोमां पेदा थपलो अने भोगोमां
| ॥१४५|| वधेलो ए दृढप्रतिज्ञ ते कामभोगथी जरा पण लेपाशे नहि.
पण तथारूप उत्तम स्थविरो पासेथी बोधिज्ञानने मेळ्वशे अने अगारने त्यजी मुंड थइ अनगार धर्मनो स्वीकार करशे.
पछी तो ते पूर्ण अहिंसा सत्य त्याग तप अने सद्वर्तनना तेजथी चमकशे अने जेवटे उत्तमोत्तम ज्ञान दर्शन चारित्र आर्जव मार्दव लघुता क्षमा निर्लोभता वगेरे गुणोथी अधिकाधिक दीपतो ते, अनुत्तर अनंत निरावरण निर्व्याघात एवा केवळज्ञान अने केवळद
१२३ बहोतेर कळानी सविस्तर समज माटे जुओ भगवान महावीरनी धर्मकथाओं' मानुं कळाभो उपरर्नु टिप्पण. १२४ आ विशेषणनी स्पष्ट समज माटे जुओ भगवान महावोरनी धर्मकथाओमान देशी भाषा उपरर्नु टिप्पण.
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