Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 496
________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥१०८॥ प्रजानो कारभार सारी रीते न चलावनारो होवाथी हुँ त्यां केवी रीते आवी शकुं ? केशिश्रम[१५४] पछी चित्त सारथिए केशी कुमारश्रमणने एम का के-हे भगवन् ! तमारे राजा पयेसी साथे शु करवू छे ? सेयविया नगरीमा सार्थवाह वगेरे बीजा घणा लोको छे, जेओ आप देवानुप्रियने वांदशे नमशे अने आपनी सेवामा रहेशे तेम ज ए लोको णना आदर माटे चित्ते आपने खानपान खादिम स्वादिम प्रतिलाभशे तथा पीठ फलक शय्या संस्तारक वगेरे द्वारा पण आपने उपनिमन्त्रित करशे. सारथिर्नु आ कथन सांभळी केशी कुमार बोल्या-चित्त ! त्यारे वळी कोइ वखते तारी सेयविया नगरीप पण आवीशु. पोताना उद्यानपाल [१५५] पछी सारथि केशी श्रमणने वांदी नमी त्यांथी पोताना ऊतारा तरफ जवा माटे पाछो फर्यो. ऊतारे आवी घोडे जोडेला कोने करेली चार घंटावाळा रथमां बेसी सेयविया नगरीथी जे रीते आव्यो हतो ते रीते कुणालदेशनी वचमां थतोक पाछो त्यां जवा नीकळ्यो. केकयिअर्ध देशनी सेयविया नगरीमा आवतां ज चित्त सारथिए त्यांना मियवण उद्यानना रखेवाळोने बोलावी सूचना करी के-हे । भलामण देवानुप्रियो ! पावापत्य केशी कुमारश्रमण क्रमे क्रमे गामेगाम फरता फरता अहीं आववाना छे, तो तेओ अहीं आवे त्यारे, देवानुः प्रियो ! तमे तेमने वांदजो, नमजो, तेमने रहेवा योग्य स्थळमां रहेवानी अनुज्ञा आपजो अने पीठ फलक शय्या संस्तारक लई जवा १० निमंत्रण करजो. ते रखेवाळोए चित्त सारथिर्नु उक्त कथन माथे चढाव्यु अने तेओ केशी कुमारना आगमननी राह जोवा लाग्या. [१५६] मियवणना रखेवाळोने पूर्वोक्त भलामण करी चित्त सारथि सेयविया नगरीए आवी पहोंच्यो. नगरीनी वच्चोवच्च थतोक ते, पयेसी राजाना घरमां बहारनी उपस्थानशाळा तरफ गयो. त्यां पहोंची तेणे घोडाओने थंभावी रथ ऊभो राख्यो, रथथी ऊतरी राजा जितशत्रुप आपेलु महामूल्य मेट' लई ते सारथि, राजा पयेसी पासे गयो, हाथ जोडी राजा पयेसीने वधावी ते भेटणुं तेने नजर कयु. राजा पयेसीए जितशत्रुनी मेट स्वीकारतां चित्त सारथिनुं सन्मान कर्यु, सत्कार कर्यो अने तेने पोताने घेर जवानी अनुज्ञा आपी. राजा पासेथी नीकळी रथमां बेसो सारथि पोताने घेर आव्यो, नाहो, बलिकर्म कयु, खाइ पीने शुद्ध थयो अने पछी पोताना Jain Education remona For Private Personel Use Only jainelibrary.org

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