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रायपसेणइय सुत्तनों सार
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॥११६॥
आ उद्यानभूमि तारी पोतानी छे तेथी अहीं बेस के न बेसचं प तारी वृत्तिनी वात छे. पछी तो चित्तसारथि अने राजा पपसी प बन्ने जणा साथे केशी कुमारश्रमणनी पासे बेठा. राजाप श्रमणने पृछ्यु:
जीव अने
शरीर भिन्न हे भंते ! तमारा श्रमण निग्रंथोमा पवी समज छे, एवी प्रतिज्ञा छे, एवी दृष्टि छे, एवी रुचि छे, एवो हेतु छ, पवो उपदेश छे,
| भिन्न छे एवो संकल्प छे, एवी तुला छे, एवं मान छे, एबुं प्रमाण छे अने एवं समोसरण छे के-जीव जुदो छे अने शरीर जुदुं छे, पण |
एवी श्रमजे जीव छे ते ज शरीर छे पवी समज नथी. कुमारश्रमण बोल्याः
णनी समज हा, पपसी ! अमारी समजमां जीव जुदो हे अने शरीर जुर्नु छ एम छे पण जे जीव छे ते ज शरीर छे एवी अमारी समज नथी. [१६७] राजा वोल्योः जीव अने शरीर बन्ने जुदां जुदां ज होय अने जे जीव छे तेज शरीर छे एम न होय तो, हे भंते! तमे सांभळो केएक मारो दादो हतो, जे आ ज नगरीमा मोटो अधार्मिक राजा हतो, ते पोताना देशनी पण ठीक सार संभाळ न करतो अने १० १०४ समोसरण एटले एक मतमा “घणाओगें मीलन"-["एतत् समवसरणम्-बहूनामेकत्र मीलनम्”-पृ० १३३ टीकाकार]
१०५ दीघनिकायमां आ बाबत नीचेनी हकीकत छे. राजा पायासि अने कुमार काश्यप ए वे वच्चे मुलाकात थतां पायासि पोतानी शंकाओ काश्यप पासे रजु करे छे. पछी काश्यप, राजाने समजाववा कहे छे के-हे राजन्य ! आ चन्द्र शुं छे ? सूरज शुं छे? तेओ आ लोकमां छे के परलोकमां छे ? देवो छे के मानवो छ ? अर्थात्-आ उदाहरण आपीने काश्यप, राजा पासे परलोकनी साबीती आपे छे पण राजाने गळे आ वात उतरती नथी. पछी राजा कहे छे के, मारा केटलाक जातभाइओ अने मित्रो प्राणातिपातादिकमां मस्त रहेता, तेओने |१५ में कहाँ राखेखें के प्राणातिपातादिकथी तमे नरके जाओ तो मने ए बाबतनी सूचना करवा अहीं आवजो. पण तेओ अहीं आव्या नहीं वेम
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