Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 507
________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार मनुष्यलोकमां जईने पापकर्मनां माठां फळोनी सूचना करी आघवानी पनी तो घणीय इच्छा होय, पण ते पेला अपराधी पुरुषनी पेठे त्यांथी छूटोज थई शकतो नथी. नरकमा ताजो ज आवेलो अपराधी-नारकी, मनुष्यलोकमां आववाने तो इच्छे छे, पण नीचेनां चार कारणोने लीधे ते अहीं आवी शकतो नथीः ___ त्यांनी-नरकनी भयंकर वेदनानो अनुभव तेने अत्यंत विह्वल करी नाखे छे अने तेथी ते किंकर्तव्यमूढ वनी जाय छे, ए प्रथम ५॥११९॥ कारण छे. नरकना कठोर संत्रीओ ए नारकीमे घडीभर पण छूटो राखता नथी अने तेने वारंवार सताव्या करे छे, ए बीजुं कारण छे. ताजा नारकीन नारक वेदनीय कर्म पूरु भोगवाई रहेलु नथी होतुं, ए त्रीजुं कारण छे, अने चो) कारण तेनुं नरकर्नु आव पूरु थपलुं नथी होतुं, ए छ, अर्थात् मनुष्यलोकमा आववाने इच्छतो पण नारकी ए बधा प्रतिबंधोने लीधे अहीं आवी शकतो नथी. माटे, हे पपसी ! 'शरीर साथे ज जीव अहीं बळी जाय छे अने तेथी मरेलो माणस फरी अहीं क्याथी आवी शके ? एम जे तुं कहे छे ए बराबर नथी. मरीने नरकमां पडेलो प्राणी अहीं नथी आची शकतो तेनुं कारण तेनी परतंत्रता ज छे, नहीं के ते नथी. माटे, हे पपसी! तुं पम समज के-जीव जुदो छे अने शरीर जुदुं छे-कोइ काळे ते वन्ने एक छे एवं नथी. [१६९] पएसी बोल्योः हे भंते ! मारी मान्यताने दृढीभूत करनारो आ एक बीजो दाखलो समिळोअहीं-आज नगरीमा मारी एक दादी रहेती हती, जे मोटी धार्मिक श्रमणोपासिका हती, वळी ए जीव अजीव पुण्य पाप १०७ आ सूत्रमा राजा पएसीए पोतानी धर्मिष्ठ दादीनुं उदाहरण आपीने जे हकीकत जणावी छे से ज हकीकत दीघनिकायमा राजा १० Jain Education Thermal For Private sPersonal use Only Mjainelibrary.org

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