Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 520
________________ रायपसेण| इय सुचनो सार पएसीज्ञान मेळववानी वृत्तिथी में तमने उश्कयो ॥१३२॥ गृहपतिपर्षदाना अपराधीने बंधाइने आगमां सळगी जवू पडे. ब्राह्मणपर्षदानो अपराधी अनिष्ट उपालंभपूर्वक कुंडीना वा शुनकना निशानथी अंकित थाय के निर्वासित थाय-हदपार जाय. ऋषिपर्षदानो अपराध करनार, अतिअनिष्ट नहिरवी वाणीवडे उपालंभ पामे. हे पपसी ! उक्त दंडनीतिथी तुं परिचित छे, छताय तुं मारी प्रतिकूळ वा करे छे, विपरीत रह्या करे छे, माटे ज तारे 'तुं मूढतर छे' पवी हळवी पण मारी आक्रोशवाणी वाणी सांभळवी पडे छे. पएसी बोल्योः हे भंते ! मने एम थपलु के हुं जेम जेम आपनी प्रतिकूळ वर्तीश-विपरीत वर्तीश, तेम तेम तत्त्वने विशेष जाणीश, ज्ञानने पामीश, करण अने दर्शनने अधिक समजी शकीश, तेथीज हुं अत्यारसुधी आपनी प्रतिकूळ वो छु अने विपरीत बोल्यो छु. [१८]-केशी मुनि बोल्याःहे पपसी ! तुं जाणेज छे के व्यवहारकोना चार प्रकार कहेला छे. केटलाको दे तो छ पण मीठी वाणी नथी बोली शकता. केटलाको वाणीने तो मीठी राखे छे पण कशुय देता नथी. केटलाको । कशंय देता नथी तेम वाणी पण मीठी नथी राखता. अने केटलाको दे छे अने साथे पाणी पण मधुरी बोले छे. हे परसी! आ चार व्यवहारकोमा जे देतो नथी अने वाणी ये मीठी नथी बोलतो, ते तद्दन अव्यवहारी छे अने बाकीना त्रणे व्यवहारना जाणकार छे. हे पपसी ! प रीते तुं पण व्यवहारी छे, कांइ अव्यवहारी नथी. ११६ आ पदनी व्याख्या करतां टीकाकार लखे छे के-"केशी कुमारश्रमणे राजा पएसीने 'तुं मुढ नर छे' एम पहेलां कहेलं अने तेथी राजाना मनमा कलुषता पण नीपजेली, हवे ते कलुषता दूर करवा अने तेने संतुष्ट-प्रसन्न करवा केशी कुमारजीए तेने अहीं' व्यवहारी' व्यवहारी छे Jain Educatio n al For Private & Personel Use Only How.jainelibrary.org

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