Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 525
________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार [१९०] केशीकुमारनुं कथन सांभळी आखरे राजा परसोने भान आभ्युं अने तेणे केशीकुमारने वन्दन करीने कहां के, हे भंते! मारे जराय पस्तावुं पडे एवं तो हुं नहि करूँ. मारो पूर्व ग्रह छोडीने आपनी पासे हुं केवळीभाषित धर्मने सांभळवानी - समजवानी इच्छा राखुं हुं, माटे हवे मारे पेला लोढावाळानी पेठे पस्तावानुं क्यां र ? केशी भ्रमण बोल्याः हे देवानुप्रिय ! सुख थाय तेम कर, पण सारा काममां प्रतिबंध न आववा दे. राजानी जिज्ञासावृत्ति जोइ केशी श्रमणे जेम चित्त सारथिने धर्मकथा कही संभळावी गृहिधर्म समजाभ्यो हतो, तेम राजा पसीने पण तेमणे धर्मकथा कही गृहिधर्मनी समजण आपी अने राजाप गृहिधर्म स्वीकारी पोतानी सेयविया नगरी भणी जवानो मनसूबो कर्यो. [१९१] राजा उठतो हतो त्यां केशी श्रमण बोल्याः पसी ! कलाचार्य, शिल्पाचार्य अने त्रीजा धर्माचार्य ए त्रण आचार्यांना विभागने तुं जाणे छे अने प त्रणेनी विनयप्रतिपत्ति केवी केवी करवानी होय छे, तेनी पण तने खबर छे. पपसी बोल्यो: भंते! हा, ए बधुं हुं बराबर जाणुं हुं. कलाचार्य अने शिल्पाचार्यनुं तैलादिकथी मर्दन करवुं, तेमने म्हवराववा, तेमनी पासे पुष्पादिकनी सुवास फेलाववी, वस्त्रो अने घरेणां गांठां आपी सारी रीते शणगारवा, आदरपूर्वक जमाडवा, मोटुं प्रीतिदान आप अने तेमने एवी वृति बांधी आपवी के जे तेमना पुत्रोना पुत्रो सुधी पहोंच्या करे. १५ अने धर्माचार्यने जोतां तेमने वंदन कर, सत्कार करवो, देवताना चैत्यनी पेठे ते मंगळमय आचार्यनी उपासना करवी तथा तेमने खान पान खादिम स्वादिम वगेरे निर्दोष पदार्थोद्वारा प्रतिलाभवा अने पीठ पाटियां शय्या संथारो वगेरे लइ जवा निमंत्रित करवा. Jain Education Intelational १० For Private & Personal Use Only श्रमणोपा सक पएसी आचार्योना अने तेमनी प्रतिपत्ति ओना प्रकारो ॥१३७॥ www.jainelibrary.org

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