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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
कडछी रही गई छे अने देवमंदिग्मा पेसवाने तुं पगला ज उपाडे छे, पयामां पायखानामां बेठेलो कोई पुरुष तने पम कहे के
स्वर्गमा हे स्वामी ! तमे अहीं पायखानामां आवो, बेसो, ऊभा रहो अने थोडीवार लांबु डील करो; तो हे पएसी ! तुं ए वातने काने
गएलो | घर खरो?
प्राणी स्वपपसी बोल्योः हे भंते ! हु एवं कशं काने न धरूं अर्थात् एक क्षण माटे पण पायखानामा न जउं. हे भंते ! पायखार्नु तो भारे गंदु छे, पवी/
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गीय भो
TA गंदी जग्यामां हुं शी रीते जई शकुं? केशी कुमारश्रमण बोल्याः |
सक्तिने ए ज प्रमाणे, हे पपसी ! स्वर्गमां देव थपली तारी दादी अहीं आवी तने पोतानां सुखो कहेवाने इच्छे, तोपण आवी शके नहि.
लीधे अर्हि स्वर्गमां ताजो उत्पन्न थपलो देव, मनुष्यलोकमां आववाने तो इच्छे छे, पण नीचेनां चार कारणोने लीधे ते अहीं आची
न आवी शकतो नथीः
शके माटे ए देव, स्वर्गना दिव्य कामभोगोमां खूब मशगुल बनी जाय छे अने मानवीसुखोमां तेनी रुचि रहेती नथी, ए पहेलुं कारण छे.
जीव नथी ए देवनो मनुष्य साथेनो प्रेमसंबंध टूटी गपलो होय छे अने स्वर्गनां देवदेवीओ साथेनो नयो प्रेमसंबंध तेमा संक्रमेलो होय छे,
एम न ए बीजुं कारण छे.
कहेवाय दिव्य कामसुखो भोगववानी लालचमां पडेलो ए देव, अब घडीए जउ अब घडीए जउं, एम विचारे तो छे, पण तेना आवतां खरो? राजा कहे छे-न जाय तेम आ गन्धाता मानवलोकमाथी स्वर्गे पहोंचेला देवो फरोबार गन्धाता मानवलोकमां आवे खरा ?" इत्यादि.....॥१२१।। दीघनिकाय पृ० ३२४.
१०९ दीघनिकायमा कहेलुं छे के-"मानवलोकना पूरां सो बरस एटले त्रायस्त्रिंश देवोनो एक दिवस-रात; एवा आपणां सो वरस जेटला
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