Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 503
________________ रायसेनइय सुत्तनो सार नथी पण आडे वळे मार्गे चाले छे, तेम विनयना मार्गथी छटकी जवाने लीधे तने पण सारी रीते पूछतां आवडतुं नथी. पपसी ! मने जोईने तने एवो विचार थयेलो खरो के आ जड लोको पेला मोटा जडनी उपासना करे छे अने आ मारा उद्यानमां पण वराडा पाडी मने य सुखे रहेवा देता नथी ? राजाः हा, ए यात खरी. [१६५ ] पण हे भंते! प तमे जाप्यं शाथी ? तमने पहुं ते केबुक ज्ञान के दर्शन थपलं छे जेथी मारा मननो संकल्प पण तमे जाणो लोधो ? केशी श्रमण बोल्याः अमारा भ्रमण निर्यथोना शास्त्रोमां कहेलुं छे के ज्ञानना पांच प्रकार छेः १ आभिनिबोधिकज्ञान २ श्रुतज्ञान ३ अवधिज्ञान ४ मनः पर्यवज्ञान अने ५ केवळशान. तेमां अवग्रह ईहा अवाय अने धारणा पम चार प्रकारनुं पहेलुं ज्ञान छे. अंगप्रविष्ट अने अंगवाह्य ara प्रकार बीजा ज्ञाना छे. त्रीजुं ज्ञान, भवप्रत्यय अने क्षायोपशमिक एम बे भेदवाळु छे अने चोथा ज्ञानना ऋजुमति तथा विपु. लमति एवा वे भेद छे. १० हे पपसी ! जणावेल पांच ज्ञानोमां पहेलांनां चारे ज्ञान तो मने थरलां जे फक्त एक पांचमुं केवळशान छे ते मने थपलुं नथी. प पांचमुं ज्ञान तो अरिहंत भगवंतोने होय छे. Jain Education nterational हे परसी ! हुं छद्मस्थ हुं अने ए चार ज्ञानोद्वारा तारा मनना संकल्पने पण जाणी शकुं हुं-जोई शकुं कुं. [१६६ ] पछी राजा केशी श्रमणने कहांः हे भंते! अहीं हूं आपनी पासे बेसुं ? केशी कुमारभ्रमण बोल्याः १०३ ज्ञानना नाना मोटा अनेक प्रकारो अने तेनी विशेष समजुती माटे जुओ नन्दीसूत्र अथवा भगवतीसूत्र. For Private & Personal Use Only पसीना अविनय बाबत श्रमणनी टकोर श्रमणना ज्ञान धावत पसीनी पृच्छा ॥११५॥ www.jainelibrary.org

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