Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 500
________________ रायपसेण इय सुत्तनो सार ॥११२॥ Jain Educat [१६०] पछी सारथि बोल्योः हे भगवन् ! कोई एक वखते मारी पासे कंबोज देशमांथी चार घोडाओनी भेट आवेली, प में न राखतां परवारी राजाने त्यां मोकली आपी, तो हे भगवन् ! ए घोडाओना व्हानाथी राजा पप्सीने हुं आप देवानुप्रियानी पासे लावी शकीशः माटे हे देवानुप्रिय ! ते समये तमे राजा पएसीने धर्मकथा कहेतां लेश पण ग्लान थशो नहि तमे तमारे राजा पपसीने खूब छूटथी धर्म कहेजोलेश पण अचकाशो नहि. पछी केशी कुमारभ्रमण बोल्याः हे चित्त! ते प्रसंगे वात. त्यारवाद चित्तसारथि पोताना धर्माचार्य केशी कुमारश्रमणने चांदी नमी रथमां बेसी पोताने आवासे जई पहोंच्यो. ational [१६१] हवे एक दिवसे प्रभातना पहोरे नियम धारी अने आवश्यक करी सूर्य उगतां ज चित्तसारथि पोताने घेरथी राजा परसीने घेर गयो. राजाने नमस्कार करी जयविजयथी वधावी ते बोल्योः हे देवानुप्रिय ! आपने में केळवेला चार घोडानी भेट मोकलेली छे, तो हे स्वामी ! चालो अने आज ए घोडाओनी चेष्टा जुओ, १० अर्थात् पमनां चाल स्वभाव वगेरेनी परख करो. राजा सारथिने कः चित्त ! तुं जा अने पारखवाना ते चारे घोडाओ जोडेलो अश्वरथ जलदी तैयार करी अहीं हंकारी लाव. अश्वरथ आवी पहोंचतां शरीरने सजधज करीने राजा रथमां बेसी सेयविया नगरीनी बच्चोवच्च थतोक घोडाने खेलवतो खेलयतो बहार नीकळ्यो. एम जतां जतां चित्तसारथि ते रथने अनेक योजनो" सुधी खंची गयो. राजा परसी, गरमी, तरस, रथनो वायरो ऊनी लू के १५ उडती धूळथी कंटाळी थाकी गयो भने बोल्योः १०१ अहींनो आ 'अनेक योजन' शब्द, फरवानी मर्यादाना अतिरेकने सूचवे छे तेथी तेनो 'सो पचास योजन' एवो अर्थ कोइ न समजे. ५ For Private & Personal Use Only घोडानी परखने बाने चित्त, पसीने श्रमण पासे लई गयो v.jainelibrary.org

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