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रायसेनइय सुत्तनो
सार
चामडी तपनीयमय अने माथा उपरना वाळ रिष्टरत्नमय छे.
[१३०] ते दरेक जिनप्रतिमाओनी पाछळ, माळावाळां घोळां छत्रो घरी राखनारी छत्रधारक प्रतिमाओ छे, बजे वाजुर मणिकनकमय चामरने वझती चामरधारक प्रतिमाओ छे.
बळी ते दरेक जिनप्रतिमाओनी आगळ सर्वरत्नमय पवी वे बे "नागप्रतिमाओ, भूतप्रतिमाओ, यक्षप्रतिमाओ अने कुंडधारक प्रतिमाओ आवेली छे.
प उपरान्त एक सो आठ पकसो आठ घंटो, कळशो, भृङ्गारो, आरिसाओ, थाळो, पात्रीओ, सुप्रतिष्ठो, मनोगुलिकाओ, रत्नकरंयाओ, इकाओ गजकंठाओ अने वृषभकंठाओ वगेरे अनेक पदार्थों त्यां प प्रत्येक जिनप्रतिमानी आगळ गोठवेला छे.
चळी फूल, माळा, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभरण, सरसव अने मोरपींछ वगेरे उपकरणोनी एकसो आठ एक सो आठ चंगेरीओ, त्यां प्रतिमाओ आगळ मूकी राखेली है.
८५ सूर्याभदेवना विमानमां तो बधा वैमानिक देवो रहे छे, त्यां नागो अने भूतोनो निवास नथी तेम संबंध पण नथी, छतां एविमानमो नागो अने भूतोनी प्रतिमाओ शा माटे स्थापेली हशे ? स्थापेली तो ठीक पण एमने जिनप्रतिमाओनी आगळ शा माटे मुकवामां आव हो ? नागोनी अने भूतोनी प्राचीन पूजापद्धतिनी आमा असर तो नहि होय ? लोको नागोथी अने भूतोथी भय पामता अने तेमांथी पोतानुं रक्षण मेळवबा तेओए नागो अने भूतोनी पूजा प्रवर्तावेली ए बात प्रसिद्ध छे; त्यारे शुं सूर्याभदेव पण नागोनी अने भूतोनी पूजा करतो ह खरो ? एने पण एमनाथी भय हशे के केम ? नाग अने भूत ए बन्ने नामो एक बळवान अने सुप्रसिद्ध वंशने पण सूचवे छे, तो शुं अहीं पराएला ते बन्ने शब्दो ए वंशना सूचक छे के नागदेवता वा भूत प्रेत व्यंतरना सूचक छे, ए बाबत पण विचारवा जेवी तो खरीज.
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नागनी अने
भूतनी
प्रतिमाओ
॥८५॥
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