Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 491
________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार पार्थापत्य | केशिकुमार श्रमण ॥१०३।। [१४७] ते चखने त्यां-सावत्थी नगरीमां-पापित्य केशी नामे कुमारश्रमण पण आवेला हता. ए केशी कुमारश्रमण जातवान कुलीन बलिष्ठ विनयी ज्ञानी सम्यग्दर्शनी चारित्रशील लाजवान निरभिमानी ओजस्वी तेजस्वी वर्चस्वी अने यशस्वी हता. एमणे क्रोध मान माया अने लोभ उपर जीत मेळवेली हती, निद्रा इंद्रियो अने परीषहो उपर काबू करेलो हतो. पमने जीवननी तृष्णा के मरणनो भय नहोता. पमना जीवनमा तप, चरण, करण, निग्रह, सरळता, कोमळता, क्षमा, निर्लोभता ए बधा गुणो मण्यरूपे हता. वळी, ते । श्रमण, विद्यावान मांत्रिक ब्रह्मचारी अने वेद तथा नयना ज्ञाता हता. तेमने सत्य शौच वगेरे सदाचारोना नियमो प्रिय हता, तथा तेओ चौदपूर्वी अने चार शानवाळा हताः पवा ते केशी" कुमारश्रमण पोताना पांचवें भिक्षुशिप्यो साथे क्रमे क्रमे गामे गाम फरता फरतो सुखे सुखे विहरता श्रावस्ती नगरीनी यहार ईशान खूणामां आवेला कोट्टय चैत्यमां आवीने ऊतर्या अने त्यां योग्य अभिग्रह धारण करीने संयम तथा तपथी आत्माने भावित करता रहेवा लाग्या. जे वखते केशी कुमारथमण सावत्थी नगरीए आव्या ते वखते ते नगरीमां ठेर ठेर-तरभेटामा त्रिकमा चोकमां चाचरमा चोकठामा राजमार्गमा अने शेरीप शेरीप ज्यां सांभळो त्यां घणा लोको परस्पर पम कहेता हता के आजे तो पापित्य केशी कुमारश्रमण अहीं आव्या छे, तो हे देवानुप्रियो! आपणे तेमनी पासे जईए, तेमने बांदीप, नमीप, सत्कारीए अने सन्मानीए. ९६ दीघनिकायमा आमने स्थाने कुमार काश्यप (पालो-कुमार कस्सपर्नु नाम छे. काश्यपनो भिक्षु समुदाय पांचर्सेनी संख्यामा बतावेलो छे. कुमार काश्यपने श्रमण गौतमना (गौतम बुद्धना) श्रावक तरीके वर्णवेला छे. (बौद्धशासनमा त्यागी होय ते श्रावक अने गृहस्थ होय ते उपासक) आ कुमारकाश्यप सीधा ज सेयविया नगरीमा आवे छे त्यारे केशीकुमार-श्रमण सावत्थीए आव्या पछी सेयरिया भणी जाय छे. आजन्म ब्रह्मचारी होय ते कुमारश्रमण कहेवाय. मूळ तो कुमारश्रमण शब्द यौगिक छे पण पछी ते ब्राह्मण मुनि वगेरे शब्दनी पेठे रूढ थयो लागे छे. पाणिनीयना मूळ अष्टाध्याय [२-१-७०]मां पण ए शब्दनो उल्लेख छे एटलो ए शब्द प्राचीन छे. Jain Education Trainelibrary.org a For Private & Personal Use Only l

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