Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
View full book text
________________
सूर्याभदेवे
रायपसेणइय सुत्तनो
सार
सोना रूप रत्नो वगेरे वेचायां, पम ते ते देवोए पोताना स्वामीना अभिषेकनी खुशालीमां ते विमानने अनेक प्रकारे सुशोभित कर्यु.
वळी, ते प्रसंगे हर्षमा आवी जई कोइ देवो बुचकारा करवा लाग्या, कोई फूल्या समाता नथी, केटलाको नाचवा मांड्या, तांडव पहेरेला करवा लाग्या, होकारा करवा लाग्या, बाहुओ अफळाववा लाग्या, हणहणवा मांड्या, हाथीनी पेठे चीसो पाडवा लाग्या; केटलाको वस्त्र अने ऊछळे छे, सिंहनाद करे छे, ऊंचे ऊडे छे, नीचे पडे छे, पग पछाडे छे, गाजे छे, झबके छे, वरसे छे, पोतपोतानां नामो कही| आभूषणो संभळावे छे, तेजथी तपे छे; केटलाको मोटेथी थूथू करे छे अने केटलाको पोताना हाथमां धूपधाणां, फळशो अने कमळो वगेरे |५|| राखी आमतेम दोडादोडी करे छः ए रीते ते दरेक देवो पोताना स्वामीना अभिषेकनी खुशाली माणे छे.
॥९ ॥ अभिषेक थई रह्या बाद ते दरेक देवो हाथ जोडीने बोल्या के
हे नंद ! तारो जय थाओ, हे भद्र ! तारो जय थाओ, जे अजित छे तेने तु जित अने जे जित छे तेनी तुं रक्षा कर. देवोमा जेम इंद्र. ताराओमां चंद्र, असुरोमां अमर, नागोमां धरण अने मनुष्योमां भरतनी पेठे तुं अमारी बच्चे रहे.
वळी, घणां पल्योपमो, घणां सागरोपमो, घणां पल्योपमो अने सागरोपमो सुधी अमारा उपर अने आ आखा सूर्याभविमान उपर |१०| आधिपत्य भोगव अने अमने बर्धाने सुरक्षित राखतो तुं अहीं आनंदथी विहर.
आम बोलीने ते बधां देवदेवीओए जय जय नाद कयों अने ए रीते सूर्याभदेवनो इंद्राभिषेक पूरो थयो. [१३७] अभिषेक पूरो थतां ते सूर्याभदेव, त्यांची पूर्वने बारणे नीकळी अलंकार सभाने प्रदक्षिणा करतो तेमा तेज वारणे पेठो अने त्यांना मुख्य सिंहासने बेठो.
पछी तेना सामानिक सभ्यदेवोए तेनी समक्ष त्यां बधी अलंकारसामग्री उपस्थित करी. पहेला तो म्हापलो होवाथी तेणे सुको-|१५| मळ अंगलूछणा द्वारा पोतानां अंगो लूछयां, तेना उपर सरस गोशीर्षचंदननो लेप कर्यों अने त्यारबाद पकज फूंके ऊडी शके तेवू
Jain Educationem tonal
For Private Personel Use Only
waljainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536