Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 482
________________ रायसेनइय सुत्तनो सार ॥९४॥ Jain Education Internatio त्यारबाद ते सूर्याभदेव सातआठ पगलां पाछो फर्यो, पछो बेसी, डाबो पग ऊंचो राखी, जमणो पग जमीन उपर मूकी, माथु ऋण वार नीचुं नमावी, हाथ जोडीने आ प्रमाणे बोल्योः अरिहंत भगवंताने नमस्कार, यावत् अचळ सिद्धिने वरेलाओ प्रति नमस्कार. [पृ० १८ पं० २ ] पछी तो ए सिद्धायतननो बचलो भाग, तेनी चारे वाजुनो द्वारप्रदेश, मुखमंडपो, प्रेक्षागृहमंडपो, वज्रमय अखाडो, बधा चैत्यस्तंभो, मणिपीठिकाओं उपरनी जिनप्रतिमाओ बधां चैत्यवृक्षो, महेन्द्रध्वजो, नंदापुष्करिणीओ, माणवक चैत्यस्तंभोमां सचवाई रहेलां जिननां सक्थिओ, देवशय्याओ, नाना महेन्द्रध्वज, सुधर्मासभा, उपपातसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा अने ए बधी सभाओनो चारे बाजुनो प्रदेश, ए बधांने तथा ए वधे स्थळे आवेली पूतळीओ शालभंजिकाओ, द्वारचेटीओ अने वीजां वधां भव्य उपकरणो वगेरेने ते सूर्याभदेवे मोरपींछीथी पंज्यां दिव्य पाणीनी धाराओथी पोंख्यां, तेमना उपर गोशीर्ष चंदनो लेप्यां ते बती थापा मार्या अने तेमनी सन्मुख फूलना पगर भर्या, धूप दीधो अने ते शोभावर्धक बधी सामग्री उपर फूल चडाव्यां, तेमज माळाओ, घरेणां अने वस्त्र वगेरे पहेराव्यां अने पोतानी ऋद्धिने सूचवता ते प्रत्येक पदार्थ तरफ ए रीते ते सूर्याभदेवे पोतानो सद्भाव बताव्यो. एम करतो करतो ते, छेक छेल्ले व्यवसायसभामां आवी पहोंच्या. त्यां तेणे त्यांना पुस्तकरत्नने मोरपींछथी पूंज्यु, दिव्य जळनी धाराथी पोंख्युं भने उत्तम गंध तेमज माळा वगेरे वडे पूर्ववत् तेनी अर्चा करी तथा त्यांनी पूतळीओ वगेरे तरफ पण तेणे ते ज रीते पोतानो सद्भाव सूचित कर्यो. आ वधुं करीने ज्यारे ते बलिपीठ पासे आवी बलिनु विसर्जन करें छे त्यारे तेणे पोताना आभियोगिक देवोने बोलावी नीचेनो तु अभिदधति - विरतिमतामेव प्रसिद्धः चैत्यवन्दनविधिः अन्येषां तथाऽभ्युपगमपुरस्सरकायव्युत्सर्गासिद्धेः इति वन्दते सामान्येन, नमस्करोति आशय- १५ वृद्धेः अभ्युत्थाननमस्कारेणेति । तत्त्वमत्र भगवन्तः परमर्षयः केवलिनो विदन्ति । अत ऊर्ध्वं सूत्रं सुगमम्, केवलं भूयान् विधिविषयो वाचनाभेद इति" - पृ० ११० ) For Private & Personal Use Only १० सूर्याभदेवे विमाननी पूतळीओ वगेरे अर्चना करी अने देवो द्वारा करावी www.ainelibrary.org

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